Wednesday, 4 March 2015

आज की रात आओगी ना

आज की रात आओगी ना

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(डॉ.एल .के.शर्मा )

लौह-शलाकाओं के निर्मम प्रहारों से 

एक पुराने घर की टूटती दीवारें 

भारी कोलाहल से गिरती प्राचीरें 

उडती धूल के बीच 

धराशायी होते दरवाजे 

अपने होने पर अफ़सोस करतीं ,

मलबे में टूट कर दबी खिड़कियाँ 

चूने की गंध भरी हवाओं की गरम झिडकियां !!


कोलतार की गरम सडक पर 

एक भारी लाठी की ठमक के साथ 

रात के पहरेदार की मरियल सी

निरपेक्ष आवाज़ .. जागते रहो 

जैसे वाकई ये रात 

सोने के लिए बनी हो 

मैं समझाता हूँ खुद को लेटे रहो 

नींद से कोसो दूर बस अँधेरे को ...

ताकते रहो !!


कुछ ही देर में ,जब गरम हवाएं

लिजलिजे से पौरुष को सहलायेंगी 

आसमान में उड़ कर 

एक दूर जाती बदली की तरह 

ख्यालों में तुम आओगी

मेरे तापमान से पिघल जाओगी 

शहर के आखिरी छोर के 

इस टूटे मकान के मलबे को 

समन्दर समझ कर मुझ पर बरस जाओगी !!


आधी आधी रात को 

इस सोयी जागी रात को 

तुम्हारी देह के अश्लील आकर्षण 

एक आभासी प्रणय में बदलने लगेंगे 

अपने भीगे हुए केशों को खोलकर 

तुम प्रणय के आभास छितराओगी 

अपनी नग्न चपलताओं में 

मेरी दमित वासनाओं के बीज बिख्रराओगी !!


सहवास से गर्वित हुआ मेरा मन 

विगलित जंघाओं के पार 

रति-श्लथ सा ढह जाएगा ये तन 

जिव्हा कुछ आत्मिक संबोधन ढूँढेगी 

शेषनाग के सहस्त्र फनों से बाहर निकलेगी 

और तुम्हारे कई नाम 

अपने विष-दंतों के बीच 

हिस्स की आवाज़ के साथ उचारेगी !!


मेरे रूखे धूल अटे मटमैले बालों को 

मेरे कानो से हटा कर 

अपने बंद होठों के बीच से 

तुम बस यूँ फुसफुसओगी 

आओ अपनी वर्जनाओं से भी ऊँचे 

मेरे वक्ष से लगो , रोते रहो 

मुझे अपनी अव्यक्त पीडाओं की 

सुरंग में उतरने दो 

तुम बस यूँ ही चुप-चाप सोते रहो !!


तुम यूँ ही फुसफुसओगी ना ..

आज की रात आओगी ना ....


......© 2015 Dr.L.K. SHARMAआज की रात आओगी ना’



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