कौन हो तुम , चित्रकार
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तिमिर घना था
डराता सा सांझ का ‘अँधवन’
काले मेघों से बहुत दिन
आच्छादित था ये जीवन
कौन हो तुम , चित्रकार ,
अचानक आकर
कर दिया तुमने सब रंगीन
धुंआ धुआं सा
सुलगाता रहा था ये मन
लान्छ्नाओं की लकड़ियों से
होलिका सा दहन
ठगे से परिणय की
अधूरे से प्रणय की
टूटे काँच सी पैनी चुभन
कौन हो तुम , चित्रकार ,
हाँ ,मैं ने देखा था
सूने थार में
नीरस मल्हार में
रेत के विस्तार में
प्यासे रेत-कणों का
‘टिब्बों’ में परिवर्तन
सूखे नद की बालू करने लगी
नालों के पानी से आचमन
कौन हो तुम , चित्रकार
तुमने दी कुछ बारिशें
कुछ शिशिर बिंदु
कुछ पीले फूल तिकोमा
भर दिए मेरे आँगन
दहका दिए जोगिया पलाश
हटा कर भीतर का शत आच्छाद॒न
भर दिया तितलियों का उल्लास
महकते रजनीगंधा सरीखे
ये तुम्हारे बाहुपाश
अब और ना कुछ चाहिए
अब और न कुछ अभिलाष
कौन हो तुम , चित्रकार
(डॉ.एल
.के.शर्मा )
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA
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