Monday 12 October 2015

द से दवात द से दर्द / (डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा)

द से दवात द से दर्द

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{ “Tumhen Yaad Hoga” }

दशहरे वाले
दसवें महीने ने ,
फिर दी है दस्तक
आ रहा है  दबे पाँव
दग्ध करती यादों का मौसम
सर्दीला सा मौसम  !!
दर्दीला सा मौसम  !!
औसारे खड़ी सोचूं मैं ,
मेरे पास नहीं
कोई याद भरा
सपनीला सा मौसम  !!
देश में ऋतुकाल
दिन-दर –दिन बदलता है
नहीं बदलता तो बस ,
मेरे सहन की ऊँची दीवारों पर
और द्राक्षलतिकाओं से भरी
मेरी बगिया के दर पर
वक़्त का वो दरवेश !!
जो रोक लेता है
हवाओं पर सवार
मुझ तक आने को व्याकुल  ,
मेरे हिस्से का हर संदेश  !!
दीवान लिखती है
दुनिया अब भी प्रीत के ,  
मिलन ~बिछोह के  !!
मैं पढ़ती थी कभी  द से दवात
मैं पढ़ती हूँ आज भी
द से दवात द से दर्द
और सियाह आखर
एक काली खोह के !!



©2015“Tumhen Yaad Hoga”Dr.L.K.Sharma.



Saturday 10 October 2015

लब सडक के रह गया / ( डॉ.लक्ष्मीकांत शर्मा )

लब सडक के रह गया 
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(लक्ष्यअंदाज़”)

तू बारिशों में भीगी बंद खिड़की सा अडक के रह गया !!
गुस्सैल हवाओं की तड़प सा मैं बस तडक के रह गया !!

तू कव्वाली की राग सी गूंजी थी मंदिर से पंडाल तक ,
मकई के जल भुन दानों सा मैं बस भडक के रह गया !!

उस धनक के सारे रंग लिए तू शाम आसमां पर उतरी ,
किसी और दूसरे बादल पे मैं गरज कडक के रह गया !!

फूलों वाली गाडी में जिस मोड़ से तूने शहर छोड़ दिया ,
उस मोड़ पे एक शज़र बना मैं लब सडक के रह गया !!

कैदे तन्हाई की लैल में ना माजी याद न फिक्रे हाल ,
एक प्यास में एक नींद में “अंदाज़” गडक के रह गया !!
©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.









  





Thursday 8 October 2015

लौट आए वो बचपन / (डॉ.लक्ष्मीकांत शर्मा)

लौट आए वो बचपन

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(लक्ष्यअंदाज़”)

सेब की बर्फ लदी शाखें सुर्ख गुलों से भर जाएँ !!
बच्चों की बदमाशियाँ घर भर में घर कर जाएँ !!

इक आगोश के लम्स में मेरी माँ जैसी नजदीकी हो !
खामोश पनाह के साए में नींदें आँखों में भर  जाएँ !!

चाँद की मद्दम रौशनी में माँ कागज लिए बैठी सोचे !
प्रवासी पिता की चिठ्ठियों से मन के सूने कोने भर जाएँ !!

सहन की सरगोशी में कोई राग सुबह का फूटा हो !
कच्चे पक्के अमरूदों को हारिल आएँ  कुतर जाएँ !!

बाबा के कंठ से फिर मानस की लहरी बह निकले !
मुझे जगाने बार बार अंगुलियाँ  सर छूकर जाएँ !!

दादी की बटलोही में कई ‘शालिग राम’ नहाते हों !
घुटने चलते छुटकू उनको मुहँ में भरें  सरक जाएँ !!

धुंध भरे पहाड़ का घर इन दिनों अक्सर याद आता है !
बड़े शहर के छोटे मकाँ से जाने कब उस घर जाएँ !!



©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.

Wednesday 7 October 2015

ठीक नहीं ये ( डॉ.लक्ष्मीकांत शर्मा )

ठीक नहीं ये
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(लक्ष्य अंदाज़”)

इश्क में इतनी भी ज्यादा मसीहाई ठीक नहीं  II
धडकनें तो नुमायाँ हैं गिनती पढाई ठीक नहीं  II

मेरे कांपते हुए बदन पर बेड़ियों का पहरा है  ,
तानों की रुई से बुनी झीनी रजाई ठीक नहीं  II

पेशानी पे तेरे करम के निशाँ कम तो ना थे ,
यूँ मेरे बिगड़े नक्श की जग हँसाई ठीक नहीं  II

लापता खत सा तू शहरों शहर भटका किया ,
अब खुदी को ढूंढने की बेकस दुहाई ठीक नहीं  II

इक बुरे ख्याल सा फिर लौट तो आऊँ मगर ,
वफ़ा में उजड़े लोगों से प्रीत हरजाई ठीक नहीं  II

तेरे शहर की फ़ज़ा में बरसों  वो रुसवा रहा ,
मुद्दतों बाद अंदाज़की ये सनाशाई ठीक नहीं II


©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.