Wednesday, 18 March 2015

आज नहीं जाऊँगा मैं

आज नहीं जाऊँगा मैं.....
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आज नहीं जाऊँगा मैं
छत पर आसमान देखने
तुम्हारी खिड़की से झांकते
आवारा चाँद को देखने
और ....
तुम्हारे शहर की दिशा में
तुम्हारी छत के ऊपर उगे
यादों के उसी
धुर॒व तारे को बेधने  


मेरा प्यार...
एक आत्मा की तरह
समा जाएगा इस रात में 
तुम्हारे उजास भरे
उदास से गात में


तुम्हारे बिस्तर के
अँधेरे हिस्से में
बिछा रहेगा रात भर
मित्ती....
इत्मीनान से ,
चांदनी में सोयी रहना तुम
अपनी साँसों में मुझे
महसूस करना
मेरे तस्सवुर की बाहों में
खोयी रहना तुम ...!!

मित्ती.....
तुम्हारी खिड़की से आती
“कर्ण-फूल” की महक
मदहोशी का आलम जगाएगी ...
हवाओं में  बल खाती  
मधुमालती की सरसराहट
तुम्हे मेरी सरगोशी याद दिलाएगी ..

तुम्हारी आँखों के बंद समन्दरों पर
उडती सपनो की चिड़िया .....
मेरी कामनाओं के असीम आकाश में
कल भोर तक फड़फडाएगी... 

सो जाओ ...

मित्ती,

न जाने 

सुकून भरी ऐसी रात

हमारे नसीब में फिर कब आएगी .....!!



(डॉ.एल .के.शर्मा )
……©2014 Dr.L.K.SHARMA













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