नरगिसी आँखों वाली शायरा
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
फ़क़ीर
सही हकीर सही हम शाहों का मिज़ाज रखते हैं !!
खूने-जिगर
में लिपटी ग़ज़ल कहने का अंदाज़ रखते हैं !!
मेरे
लफ़्ज़ों के आईने में तुम तो बस खुद को देखती रहो ,
‘आबे-आईना’
को पिघला दें हम वो भी अल्फाज़ रखते हैं !!
नरगिसी
आँखों वाली शायरा दो घडी साथ चलो देख लो ,
हम
फसानों के आसमान में शाहीन सी परवाज़ रखते हैं !!
मुर्शीद
सी यह जिंदगी तुम्हें पा कर मखमूर सी होने लगी ,
इस
आलम में हम उन्स से इश्क तक की मेहराज रखते हैं !!
रश्के-कमर
हो नग्मानिगार तुम्हें देख के लिखते भी होंगे ,
दर्दीले
सुरों के माहिर हम गले में इक शहनाज़ रखते हैं !!
शोख
हवाओं से मुक़ाबिल कफस के शौक़ीन परिंदे हैं हम,
क़ैद
–ऐ -कब्र ही अता कर कि हम दिले –मुमताज़ रखते हैं !!
जुल्फों
के ख़म आपके मगरूर होने का गम्माज़ रखते हैं !!
पर
हम अपनी बात कहने का अलग ही ‘अंदाज़’ रखते हैं !!
(हकीर=तुच्छ ,शाहीन= बाज ,मुर्शीद= धर्मगुरु,मखमूर=नशीली मेहराज=सीढ़ी
,
रश्के-कमर=चाँद
को जलन देने वाली , आबे-आईना=शीशे की चमक
शहनाज़=शहनाई
सी आवाज़ ,मुमताज़=उत्कृष्ट कफस=पिंजरा ,गम्माज़=सूचक )
(डॉ.एल .के.शर्मा )
……©2015 ‘अंदाज़े-बयान’ Dr.L.K.SHARMA
……©2015 ‘अंदाज़े-बयान’ Dr.L.K.SHARMA
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