अधूरी ख्वाहिशें हैं
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(लक्ष्य
“अंदाज़”)
अधूरी ख्वाहिशें बेवक्त बारिशें हैं मुठ्ठी में टूटे सितारे है !!
गुमाँ के समन्दर में भटके सफीने हैं उफनते किनारे हैं !!
ये दुनिया अनजान मुसाफिरों से भरी सराय हो गयी है ,
मेरी सहमी हुई सी हस्ती में इश्क-ऐ-बेबसी के नज़ारे हैं !!
वह इक शख्स मेरी आँखों में हर पल नुमायाँ होता है ,
मेरे अज़ीम दिलबर तेरी परस्तिश में खुदा के इशारे हैं !!
तू ‘जोगिया पलाश’ गाता है तो अजनबी सा लगता है ,
हम मजलूम शायर हैं कि किस्मत में बस गुल-हजारे हैं !!
तेरे आने की खबर से भी ये बेअदब दिल बहलता नहीं ,
नासमझ ‘अंदाज़’ महफ़िल में भी तन्हाईयों के मारे हैं !!
(अज़ीम =महान ; परस्तिश=पूजा ; मजलूम=गरीब)
(डॉ.एल .के.शर्मा )
……©2015 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA
……©2015 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA
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