Friday 18 December 2015

गुजरे साल से खुश हैं / ( डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )

गुजरे साल से खुश हैं 
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(लक्ष्य “अंदाज़”)

हम वो हैं जो के गुजरे साल से खुश हैं !!
माछ नहीं न सही हम दाल से खुश हैं !!

बिखरी हुई रेत की कहानियाँ कौन कहे ,
तेरे गीतों के उड़ते गुलाल  से खुश हैं !!

सावन ने धरती की  सूनी गोद भरी है ,
फूल ले लो हम पातभरी डाल से खुश हैं !!

तुम दोस्तों के भेस में रकीबों से मिलो ,
हम बैचैन रात के सूरते हाल से खुश हैं !!

विलोपित नदी के तीर नेह बचा क्या ,
झुलसे हुए पेड़ इसी सवाल से खुश हैं !!

जीनते महफ़िल होने से पहले जाना होता ,
‘अंदाज़’ इस बेवजह के मलाल से खुश हैं !!

रंग भरे आस्माँ  के शामियाने तो देख ,
आवारा पहलू में बेवफा हिलाल से खुश हैं !!



©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma



Friday 11 December 2015

मेरे अदीब रहने दे / (डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )

मेरे अदीब रहने दे 

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(लक्ष्य “अंदाज़”)

सब झमेले हादिसों के मेरे करीब रहने दे !!
हाथ ना रख सीने पे जख्मे-सलीब रहने दे !! 

फिर इक बार धूप फिर से वही तन्हाई है ,
इस पे गजल ना लिख मेरे अदीब रहने दे !!

सर्द सर्द इन रातों की तवील सी तन्हाइयां ,
चाँद न सही पहलू में मेरा हबीब रहने दे !!

फूल बेच अब कोई सांझ ढले घर आया है ,
महकी जुल्फों के साए जहे नसीब रहने दे !!

उनसे तेरी चाहत पे कब कोई शेर कहा मैंने,
हाथ हटा ले होठों से सुन ऐ रकीब, रहने दे !!

नजरबंदी के दौर में कौन सिरफिरा फिरता है ,
लब को आज़ाद कर पैरों में ज़रीब  रहने दे !!




©2015 “अंदाज़े बयान” Dr.L.K.Sharma







Saturday 28 November 2015

क्यूँ ना चाहूँ / (डॉ.लक्ष्मी कान्त शर्मा )

क्यूँ ना चाहूँ 
   
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(लक्ष्य “अंदाज़”) 

दर्द की बारिशों के बाद धनक सा खिला है !!
तुझे क्यूँ ना चाहूँ जो अब जा के मिला है !!

जूनूँ –ऐ- इश्क नहीं ये सादा सा रिश्ता है ,
खुशबू बनकर जो मेरी हवाओं में घुला है !!

आजाद ही रहते हैं रंगों -बू चाँद बारिशें ,
कौन मिल्कियत बांधे किसका हौसला है !!

मेरी बाहों के दायरे में तेरी परछाई सही ,
तपती धूप में दी हुई अज़ान का सिला है !!

मुझसे दूर होना तेरे अख्तियार में नहीं ,
मुझमें तू भी मेरे नसीब सा मुब्तिला है !!

मैं उडती पतंग तू परवाज़ बन के आया ,
देख मेरे बदन का तंग टूटा है कि सिला है !!

अक्सो तस्वीर दिल की दीवार पे चस्पा है ,
देख तुझे देख ‘अंदाज़’ कैसा खिला खिला है !!


©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.









तू भी समझा होता / (डॉ.लक्ष्मी कान्त शर्मा )

तू  भी समझा होता 
   
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(लक्ष्य “अंदाज़”) 

बेहतर होता ये शनासाई समझा होता !!
उगते सूरज की  तनहाई समझा होता !!

बागो-शुबहा में फूलों के खिलने से पहले ,
उस वसले-गुल की रानाई समझा होता !!

मेरे होठों पे अपना नाम ढूंढने की जगह,
मेरी नज्मात की रोशनाई समझा होता !!

डूबती साँझों के मन्ज़र लिए आँखों में ,
कांपते जिस्मों की पुरवाई समझा होता !!

दश्त की हवाओं में यह कैसी बेचैनी है ,
कल रात सपने की बीनाई समझा होता !!

लफ़्ज़ों से बयान हुई ना नज्मों से अयाँ ,
नादानिये ‘अंदाज़’ की दानाई समझा होता !!



©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.

Wednesday 25 November 2015

दूरियाँ कम कर दे / (डॉ.लक्ष्मी कान्त शर्मा )

दूरियाँ कम कर दे 

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(लक्ष्य “अंदाज़”)  

इस से पहले कि देर हो जाए दूरियाँ कम कर दे !!
आ गले मिल शिकवों भरी मजबूरियां कम कर दे !!

नर्म अल्फाजों की हरारत कुछ इस तरह अता कर ,
बदन में सुलगते लहू की चिनगारियाँ कम कर दे !!

अपने गीतों में सुनपेड़ की जलती लाशें भी लिख ,
बाम पर इठलाते महबूब की उरियाँ कम कर दे !!

कत्ले –बेजुबाँ और अहले सियासत की तंगदिली ,
रहम कर दादरी पर ये बद्गुजारियाँ कम कर दे !!

तमगे लौटाने की जिद और आंसुओं की नुमाइशें ,
मेरे मालिक अदीबों की शर्मसारियाँ कम कर दे !!

दुकाँ बारूद की मातम भी लाती है शादमानी भी ,
बाद दीवाली हिन्द की गमगुसारियाँ कम कर दे !!


“अंदाज़” की आँखों को खौफ के मंजर ना दे रब ,
अब यूँ कर बड़बोलों की बदख्वारियाँ कम कर दे !!




©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma

Sunday 22 November 2015

सोचो, सुदेष्णा दृश्य यूँ भी बदलते हैं / (डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा)




सोचोसुदेष्णा दृश्य यूँ भी बदलते हैं 
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असंख्य शंख मालिका

पीत चित्र तालिका !!

रास राग गुनती हो

सुर की संचालिका !!

उद्दीपिनी संदीपिनी

दैदीप्य सी दामिनी !!

सौष्ठवी तुम सुन्दरी

मृदुल सुहासिनी !!

दिव्यका देबांगी

शुभ्रा  शुभांगी

बज्र कठोर मन

कमला कोमलांगी !!

भावातीत साधिके

श्लोक शंख ध्वनिके !!

चंडिका प्रचंड सी

श्यामल देवी कालिके !!

द्वापर से जोहती हो

कौन श्याम राधिके !!

कटारधार आँख से

मर्म मर्म बेधती !!

कहो , तुम कौन हो 

जन्मों से मौन हो 

झील के पानियों में 

हंसिनी सी तैरती !!


……©2015 “कहो ना कंतुश” Dr.L.K.SHARMA




Saturday 14 November 2015

सोचो, सुदेष्णा दृश्य यूँ भी बदलते हैं / (डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा)

सोचो, सुदेष्णा दृश्य यूँ भी बदलते हैं 

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कहो , तुम कौन हो
जन्मों से मौन हो
झील के पानियों में
हंसिनी सी तैरती !!

निश्शब्द शब्द टेरती
कालनिशा की झोली से
नींद को सकेरती
चक्षुओं की चितवन
अनेक चित्र उकेरती !!

यक्षिणी कि , भैरवी
अप्सरा कि , गंधर्वी
रक्त वाहिका में क्यूं
उत्तेजना बिखेरती !!

आराध्य हो या प्रेयसी
दिव्यता से मदलसी
कामना की बनचरी
रेख को उकेरती !!

चपला सी चन्द्राक्षी
कोमल कामाक्षी
अस्फुट सी वाणियों में
मन्मथ उच्चारती !!

तुम रूद्र अभिषेक हो
अपर्णा अशेष हो
रूद्र वीणा तान से
ज्योतिर्लिंग अबेरती !!

तुमने शिव आराधे हैं
मैंने शव भी साधे हैं
दिव्य द्वैत का यह संगम
यहाँ म्रृत्यु मोक्ष को हेरती !!

मैं युगों युग निहारता
नगर ग्राम पुकारता
प्यास की परिधिं में
तुम्हें व्यास बन बांधता
वर्जित मर्यादा के
अंधकूप लांघता
इस लोक की नहीं तुम

यह जीवन की बाध्यता
तुम जा बैठी आकाश में
आकाश गंग निहारती !!
भृगु-संहिता के पतरे में
मेरे तीन जन्म बांचती !!

कहो , तुम कौन हो
जन्मों से मौन हो
झील के पानियों में
हंसिनी सी तैरती !!



……©2015 “कहो ना कंतुश” Dr.L.K.SHARMA