Wednesday, 4 March 2015

साजिशें

साजिशें
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(
लक्ष्य अंदाज़”)

इन फूलों को खिलने से रोकने की साजिशें तेरी तो न थीं !! 
रात खवाब में सिसकते बदन की लरजिशें तेरी तो न थीं !!

वो कोई अज़ीज़े-जानथा जो पानी में ज़हर घोल के हँसा !
तडपती हुई मछलियों की दिलकश नुमाइशें तेरी तो न थीं !!

तू बता कि, बेबसी के सजदों पर बेरहम खुदा क्यूँकर हुआ !
बोल ,मेरे सर पे अना के ताज में आराईशें तेरी तो न थीं !!

अब तू जो कहे तो मैं इश्क में इकरारे-जुर्म‌‍ भी कर लूँगा !
मैं जानता हूँ के सजाए-मौत की सिफारिशें तेरी तो न थीं !!

बहिश्त के बाग़ में अंदाज़का खून बहा के तो गया कोई !
दिल को यकीन है मेरे कत्ल की गुजारिशें तेरी तो न थीं !!


……©2015 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.LK SHARMA


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