Friday 29 May 2015

भारतीय वायु सेना के कैडेट्स के लिए

भारतीय वायु सेना के कैडेट्स के लिए 

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आव्हान कर रही भारती !
आव्हान कर रही भारती  !!
नभ को जो गौरव से छू ले
ऐसी वीर धरोहर का
यश गान कर रही भारती !!


मेघदूत से सुंदर चेहरे
पवन पुत्र सा बल ज्ञान लिए !!
रण में जान गँवा देते हैं
क्षण में जान गँवा देते हैं
मन में माँ का ध्यान लिए !!
इन पर अपनी आशीषें
कुर्बान कर रही भारती !!
ऐसी वीर धरोहर का
यश गान कर रही भारती !!


दिल हिमगिरी का दहल उठा
जब नभ से प्रचंड प्रहार हुए !!
द्रास कारगिल की कथा पलट गई
जब शत्रु इन से दो चार हुए !!
इन के दम पर मात्रभूमि को
शत्रु-शीश दान कर रही भारती
ऐसी वीर धरोहर का
यश गान कर रही भारती !!


वर्ष 71 ,जब थार के आकाश से
इन नभ दूतों ने हुंकार भरी !!
दिल्ली लेने आए वो बंगला हार चले
जेट में जाबांजों ने उड़ान भरी  !!
इन रखवालों की छाँव में
इन नभ वालों की छाँव में
अभय विहान कर रही भारती !!
ऐसी वीर धरोहर का
यश गान कर रही भारती !!


तुमको हमने रक्त से सींचा है
उस आँगन का पहला फूल हो तुम !!
सुखोई खिलौना अब आकाश तुम्हारा आँगन है
दुश्मन को  भीषण शूल हो तुम !!
यह क्षण गौरव का तुमने दिया
हमारा सम्मान कर रही भारती !!

ऐसी वीर धरोहर का
यश गान कर रही भारती !!
आशीष वंदना के पंखों से
तुमको आसमान कर रही भारती !!
ऐसी वीर धरोहर का
यश गान कर रही भारती !!



(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA











Thursday 28 May 2015

मैं बहाना हो जाऊँगा

मैं बहाना हो जाऊँगा       
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   मैं तो अब
बहाना हो जाऊँगा
पेड़ नदी और चाँदनी के
गीत का  !!
पर लिखती ही रहना
तुम रोजगीत
मेरी प्रीत का !!

तुम लिखना ,.
यादें मेरी
बातें मेरी !!
वो दिन
जो मेरे साथ बीते, लिखना
जो छीन ली तुमने
लिखना,
वो रातें मेरी !!

मैं तो अब
बिराना हो जाऊँगा
बचपन के मीत सा
स्वपन के संगीत सा
घर के पहले संदूक में
जो रख कर
भूल गयीं तुम
उसी अधलिखे
प्रणय-गीत’ सा

तुम लिखना ,.
तुम्हें छूने से भटकी
मेरी साँसे लिखना
तुम्हारे चेहरे पर अटकी
मेरी आँखें लिखना !!
खेतों की उन रातों के
जुगनू लिखना
उस अमलतासी दोपहर
तुम्हारे बालों में ,
खोंस दिए जो मैंने
वो हरियल की पाँखें लिखना !!

मैं तो अब
फ़साना हो जाऊँगा
गीत के उन्वान सा !
कथा के वितान सा !!
एक बरसती सी रात में
शरणागत हो कर आये
और ,भुला दिए गए
किसी मेहमान सा !!!

तुम लिखना ,.
 ख़ामोशी मेरी
बेकसी मेरी !

कभी तो मिलेगी
इस अशरीर प्रेम की राह
उस ‘अ-प्रेम’ से उपजी डाह
आखिरी साँस तक
तुम्हारा होने की चाह
तुम ये चाह लिखना
तुम मेरी आह लिखना

तुम लिखना,.
बेबसी मेरी !!

 मैं तो अब
बहाना हो जाऊँगा
पेड़ नदी और चाँदनी के
गीत का  !!

पर लिखती ही रहना
तुम रोजगीत
मेरी प्रीत का !!   


लक्ष्य "अंदाज़" 
……©2014. MAIN BAHANA HO JAAUNGA’LK SHARMA






मेरे देस की रेत से

मेरे देस की रेत से ......
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गरम हवा टनकारों से रात भर रात लड़ी !!

पस्त सी अलस भोर देर तलक सोई पड़ी !!


तन फव्वारा बना मन वणजारों सा भटके ,

मेरे देस की रेत से भर गई सूखी बावड़ी !!


सूरजमुखी दाग लिए दोपहरी के चेहरे से ,

ठूंठ पड़े उस नीम की निंबोली प्रीत लड़ी !!


नगन लाज़ते परबतों ने बादलों को टेर दी,

पानी दे दो ओढने को हरीभरी इक पातडी !!


डामर पिघली सडक पे बैठ सांझ ने सोचा ,

कितने पंछी मर गए अमराई में सून पड़ी !!




(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA








Wednesday 27 May 2015

बातें बेमानी कहा करता हूँ

         
        
बातें बेमानी कहा करता हूँ !
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(लक्ष्य अंदाज़”)          

तू हादसों में रंग भरता है मैं कहानी कहा करता हूँ !!

मैं शाम के सूरज की लाचार जवानी कहा करता हूँ !!


रात के आगोश में पिघली चांदी सा दमके वो बदन ,

मैं पारा पारा बिखर के अशा’र रूमानी कहा करता हूँ !!


तेरी हिना रची अंगुली से मेरे होठों की छुवन चुराई ,

मैं उस बद्तमीज़ हवा को भी सुहानी कहा करता हूँ !!


सहन में अब तेरी याद वाली हिचकियों का डेरा है ,

मैं हर शाम तुझे अश्कों की जुबानी कहा करता हूँ !!


मेरे सपनो की रेत में जो झील बन के ठहर गई ,

मैं अब उस नदी की बेख़ौफ़ रवानी कहा करता हूँ  !!


बागीचे देखने की ख्वाहिश में सूख गई आँखों से ,

मैं पतझर में जले जंगल की वीरानी कहा करता हूँ  !!


आओ कि, मेरी बैचैन साँसों का तिलिस्म तोड़ दो ,

मैं ‘अंदाज़’ की कलम से बातें बेमानी कहा करता हूँ  !!



……©2014 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA



आखिरी अंदाज

आखिरी अंदाज
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(लक्ष्य “अंदाज़”)

यह घट बढ़ चाँद की जो हालत हुई !!
उस पर  गोया इश्क की इनायत हुई !!

उन बिल्लौरी आँखों में नहीं देखते हैं ,
एक अरसा हुए आईनों से नफरत हुई !!

अजनबी सी भीड़ में मेरे नबी खो गए ,
पहले भी कई बार मुझे ये वहशत हुई !!

इश्क के गली में बंद मकानों के आगे ,
दम तोड़ गए मुसाफिर की मैय्यत हुई !!

परिंदे की चहक को खता समझने वालों ,
कब से तुम को  गुलों से मुहब्बत हुई !!

मधु चखना है तो हाथों के डंक न गिन ,
कामयाबियां तो हासिल बा मशक्कत हुई !!

हम तो आसमाँ  को घर करने चल पड़े,
पैरों तले जमीं खिसकी तो कयामत हुई !!

खूंरेज लफ्जों को कागज़ पर उतार कर ,
सोचता है ‘अंदाज़’ ये ग़ज़ल की सूरत हुई !!



 (डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015
“ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K. SHARMA