चीरगर बुलाते हैं मुझे
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
तेरी हसरतों के बागीचे शामो
-सहर बुलाते हैं मुझे !!
जहाँ हम मिलते रहे वो रास्ते
अक्सर बुलाते हैं मुझे !!
मेरी मजबूरियाँ और तुझसे
दूरियां रोक लेती हैं मुझे ,
पर तेरी पुरनम आँखों के उदास
मंजर बुलाते हैं मुझे !!
तूने जो भेजी वो रंगीन सीपियाँ
कुछ कुछ कहतीं हैं ,
तेरे पांवों को चूम के गए वो
समन्दर बुलाते हैं मुझे !!
ख्वाहिशों में बसी हो तुम पर यह
जीस्त कमजर्फ़ है ,
आँखों के पलकों से अश्क
निकलकर बुलाते हैं मुझे !!
राहे–यकीन भी इन दिनों अहले-वफ़ा सी हो गई है,
अब दोस्तों के हाथों में छिपे खंजर बुलाते हैं मुझे !!
तेरे दीदार की आस ने अब कुछ यूँ
बदले मिजाज़
उफक के पार से आसमान के कहर
बुलाते हैं मुझे !!
ये लोग कौन हैं मेरे गाँव में
ये कैसे अँधेरे फैले हैं ,
रहजनो के लिबासों में अब क्यूँ
रहबर बुलाते हैं मुझे !!
बदन की छाल उतारे पेड़ ने कल डर
कर कहा मुझे,
तुम अब चले जाओ “अंदाज़” चीरगर बुलाते हैं मुझे !!
(डॉ.एल. के.शर्मा)
……© 2015 ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA
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