Saturday, 21 March 2015

विश्व जल दिवस पर कविता

सरस्वती , अन्न्वती भव :

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मैं, अभिमानी  

ब्रह्मा–पुत्र ‘काव्यपुरुष’

आभिजात्य वाणी में

स्तुति नहीं कर सकता

तुम्हारी अब और ...

पाखंड की

ओजभरी वाणी से

अपने लिए पीयूष की

संस्तुति नहीं कर सकता

तुम्हारी अब और ...


एक प्यासे –हाँफते

गौ-पुत्र सा

खोजता हूँ तुम्हें....
.
सरस्वती, पलक्ष्वती भव :

सरस्वती, अन्न्वती भव :

एक बार फिर

शिवालिक की पहाड़ियों से

मरुभूमि के पंचभद्र तक

ढूँढने निकला हूँ तुम्हें

भूगर्भ में

कल कल बह रही 

तुम्हारी आवाज़

एक गहरी नदी सी है

मगर ....

अविश्वास की बरफ तले

जमी एक झील सी है


मुझसे पूछना भी मत

किसने दिया तुम्हारा पता

फिर से मुझे

मत पूछना कि किसने भेजा है 

ताज़ा हवाओं में खिलते

फूलों से दूर मुझे


अलसुबह 
,
इन्हीं फूलों पर मंडराते

ख्वाबों के नीलपांखी को

किसने उड़ा दिया 

किसने प्यास से दामन भर दिया

किसने मुझे मेरे ‘दरख्त’ से

जुदा कर दिया


चले आना

अगर ....

जीवन के इस

विशाल सागर से

कभी....कभी भी,

छलका सको
 
दो बूंद वक़्त मेरे लिए

तो चले आना मेरे लिए

चले आना....

अगर फिर से अमृत छलकाती

आवाज का दरिया हो सको तु

चिड़िया सी छोटी प्यास है मेरी

और ...

बुझाने का जरिया हो सको तुम !!



(डॉ.एल .के.शर्मा )
……©2015 Dr.L.K.SHARMA










2 comments:

  1. वाह वाह !!बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति है 👌👌🙏🙏

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  2. सुंदर भाव लिए बेहतरीन रचना ।

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