. ज़िन्दगी पशेमान सी
=================
(लक्ष्य
“अंदाज़”)
इस पशेमान सी ज़िन्दगी को
नसीहत के लिए !!
नहीं आये थे हम तेरी गली में निस्बत के लिए !!
नासमझ समझ बैठे तुम इजहारे मुहब्बत होगा ,
वो गुलाब तो भेजे उस बुत की इबादत के लिए !!
यूँ भी मेरे चश्मे-नम में लोग तुम्हें देख लेते हैं ,
तो क्यूँ आता मैं नुमाइशे-सूरते-कयामत के लिए !!
तुम दुश्मने-जान सही मुझे जान से भी प्यारे थे ,
खुद को कैसे मना लेता तुम्हारी उकूबत के लिए !!
तेरे बोए गुल मेरे गुलज़ार में अब भी लहकते हैं ,
लोग अब ले जाते उन्हें तोड़कर अकीदत के लिए !!
उल्फत की वो बेड़ियाँ खुद तुमने ही काटी थी ,
हुक्म हुआ तो आयेंगे फिर से फजीहत के लिए !!
जलती वादियों में “तूश” भी दिखते नहीं जनाब ,
पश्मीना तुम छोड़ दो ‘अंदाज़’ की मैयत के लिए !!
(डॉ.एल
.के.शर्मा )
……©2014 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA
……©2014 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA
No comments:
Post a Comment