Tuesday, 10 March 2015

. ज़िन्दगी , पशेमान सी

.               ज़िन्दगी पशेमान सी
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             (लक्ष्य अंदाज़”) 

इस पशेमान सी ज़िन्दगी को नसीहत के लिए !!
नहीं आये थे हम तेरी गली में निस्बत के लिए !!

नासमझ समझ बैठे तुम इजहारे मुहब्बत होगा ,
वो गुलाब तो भेजे उस बुत की इबादत के लिए !!

यूँ भी मेरे चश्मे-नम में लोग तुम्हें देख लेते हैं ,
तो क्यूँ आता मैं नुमाइशे-सूरते-कयामत के लिए !!

तुम दुश्मने-जान सही मुझे जान से भी प्यारे थे ,
खुद को कैसे मना लेता तुम्हारी उकूबत के लिए !!

तेरे बोए गुल मेरे गुलज़ार में अब भी लहकते हैं ,
लोग अब ले जाते उन्हें तोड़कर अकीदत के लिए !!

उल्फत की वो बेड़ियाँ खुद तुमने ही काटी थी ,
हुक्म हुआ तो आयेंगे फिर से फजीहत के लिए !!

जलती वादियों में “तूश” भी दिखते नहीं जनाब ,
पश्मीना तुम छोड़ दो अंदाज़ की मैयत के लिए !!


(डॉ.एल .के.शर्मा )
……©2014 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA


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