चाँद रात है आज
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मित्ती...
तुम्हें पता है
चाँद रात है ना आज
मुझे पता है
आज की सांझ तुम
‘तुम’ सी ही अकेली छत पर
इंतज़ार कर रही होगी
'किसी' का
चाय पर और ,
यहाँ रेस्ट हाउस के सन्नाटों में
बेकल हूँ मैं
तुम्हारे पोशीदा बदन की रवायतों पर !
मित्ती....
चाँद रात है ना आज
तुम्हें पता है ना ...
आज रात जब
कोई माथा चूमेगा तुम्हारा
वो होंठ गैर से लगेंगे तुम्हें
वो जब बढ़ेंगे
तुम्हारो आँखों की जानिब
मेरी मुस्कुराती आँखे रोकेंगी उन्हें !
हाँ .. मित्ती,
चाँद रात है आज
(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA
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