‘आप’ को ना आपा को
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पथरीले सपनों में
फिर से
किसने बाग़ लगाया है !!
गाँव की गोरी को
ठगने
फिर सन्यासी आया है !!
क्या ये कागा की
चोरी है ,
या कोयल की मुँहजोरी
है !
अमराई में कुहुक –कुहुक
,
खुद अपना पता बताया
है !!
ये हर युग की सच्चाई
है ,
बस चालाकी काम आई है
!
आध:कुमारी वृंदा ने
नकली ,
कान्हा संग ब्याह
रचाया है !!
तुम शब्द-जाल में
उलझ गए ,
तुम सब्ज़-बाग़ में
सिमट गए !
जज़्बात की उडती आँधी
में ,
फिर किसने नीड बनाया
है !!
तुम मानो तो वह धोखा
था,
ये पलट वार का मौका
था !
तुम मौन रहे ना
,मुखर हुए ,
बस मेले में हाट
लुटाया है !!
हम कहते हैं बस कहते
हैं ,
पहचानी पीड़ा
सहते है !
समझ पाओ तो अच्छा है
,
यह प्रारब्ध है
,छल-माया है !!
पथरीले सपनों में
फिर से
किसने बाग़ लगाया है !!
गाँव की गोरी को
ठगने
फिर सन्यासी आया है !!
(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA
हम कहते हैं बस कहते हैं ,
ReplyDeleteपहचानी पीड़ा सहते है !
समझ पाओ तो अच्छा है ,
यह प्रारब्ध है ,छल-माया है .....बहुत बढ़िया लिखा है आपने। यर्थाथपूर्ण। साधुवाद ।
ये तो सदा ही सच रहा है हमेशा से कि ठग हमेशा साधु के ही भेष में आते है और ठग कर चले जाते है ।
ReplyDeleteपथरीले सपनो मे किसने बाग लगाया है गांव की गोरी को ठगने फिर से सन्यासी आया है ।