Sunday, 15 February 2015

‘आप’ को ना आपा को

  ‘आप’ को ना आपा को
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पथरीले सपनों में फिर से
किसने बाग़ लगाया है !!
गाँव की गोरी को ठगने
फिर सन्यासी आया है !!


क्या ये कागा की चोरी है ,
या कोयल की मुँहजोरी है !
अमराई में कुहुक –कुहुक ,
खुद अपना पता बताया है !!


ये हर युग की सच्चाई है ,
बस चालाकी काम आई है !
आध:कुमारी वृंदा ने नकली ,
कान्हा संग ब्याह रचाया है !!



तुम शब्द-जाल में उलझ गए ,
तुम सब्ज़-बाग़ में सिमट गए !
जज़्बात की उडती आँधी में ,
फिर किसने नीड बनाया है !!


तुम मानो तो वह धोखा था,
ये पलट वार का मौका था !
तुम मौन रहे ना ,मुखर हुए ,
बस मेले में हाट लुटाया है !!


हम कहते हैं बस कहते हैं ,
पहचानी  पीड़ा सहते है !
समझ पाओ तो अच्छा है ,
यह प्रारब्ध है ,छल-माया है !!


पथरीले सपनों में फिर से
किसने बाग़ लगाया है !!
गाँव की गोरी को ठगने
फिर सन्यासी आया है !!


(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA





2 comments:

  1. हम कहते हैं बस कहते हैं ,
    पहचानी पीड़ा सहते है !
    समझ पाओ तो अच्छा है ,
    यह प्रारब्ध है ,छल-माया है .....बहुत बढ़ि‍या लि‍खा है आपने। यर्थाथपूर्ण। साधुवाद ।

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  2. ये तो सदा ही सच रहा है हमेशा से कि ठग हमेशा साधु के ही भेष में आते है और ठग कर चले जाते है ।
    पथरीले सपनो मे किसने बाग लगाया है गांव की गोरी को ठगने फिर से सन्‍यासी आया है ।

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