तुम्हें याद होगा....
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अंजीर की कच्ची
शाखों पर
उलटे लटके
किसी अनाम चिड़िया के
घोंसलों जैसे
रुके हैं झोंके
हवाओं के
रूठे हैं मौसम से
कि सहमे से हैं
मेरे पस्त हौसलों
जैसे
दिन ये भी
बहुत खाली था
इम्तिहानों के बाद जैसा
कुणाली के सूखे
फूलों वाली
तुम्हारे बंद हॉस्टल
को जाती
उस सूनी सड़क जैसा
सुनो मित्ती,
बाँध ,पलाश और साँझ
के
काफिए लौट रहे हैं
नज्मों में
राह चलते पीछे से
कॉलर पकड़ कर
कोई ले जा रहा है
बरसों पुराने उदास
नगमों में
आवारगी की डोर से
अब रातों चाँद को
बाँधने की साजिशें
होंगी
तारों अटे आसमान में
ख्वाहिशों का क्या
है मित्ती,
वो हैं , बस हैं ..
खवाहिशें ,फिर
ख्वाहिशें रहेंगी !!
(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA
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