Sunday, 22 February 2015

खाली बेंच पर

खाली बेंच पर
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सूने रेलवे–स्टेशन के
उस प्लेटफार्म की  
खाली बेंच पर
बैठे हम साथ
उतने ही पास, जितने
चाँद सितारे पास हैं
तुम्हारी छत से

मैं खाली आँखों से
धुआं धुआं आसमान  
ताकता हूँ
तुम अपने सूखे होठों पर
जबरिया मुस्कान
समेटे हो
बेवज़ह


ये अंगुलियाँ
आज भी कसी हैं
पर दूजे की
हथेलियों में नहीं
बेतरतीब ठुंसे कपड़ों से भरे
सूटकेसों पर  

हम एक नज़र
नज़र बचाकर
देख लेते हैं
एक दूसरे को
फिर अपने टिकट्स को
एक और बार
जैसे वो संधि-पत्र हों
या आखिरी युद्ध में जीते
स्मृति - चिन्ह 
एक चिर शत्रु से

ना जाने आज
सियालदह एक्सप्रेस
कितना लेट आएगी
मैं जान रहा हूँ
तुम चाहती हो
मैं उठ कर पता करूँ

मगर मित्ती,
मैं नहीं जानना चाहता
कौनसी ट्रेन
किस दिशा से आएगी
हममें से किसी एक को
किस देस ले जाएगी
और कोई एक
यहीं रह जाएगा
इस अकेली रात में
सूने प्लेटफॉर्म की
खाली बेंच पर उसकी
रात बीत जाएगी
लगता तो है मित्ती,
आज रात गहरी नींद आएगी


सुनो ,

तुम चाय पिओगी....
मुझे पीनी है....


(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA





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