Monday, 23 February 2015

फाग-फाग होरी हो गयी

फाग-फाग होरी हो गयी
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(1)

आज फिर अचानक
थम सी गयीं हवाएं ,
ठिठक गए पत्तों के पांव !
जाग सी उठी घटाएं ,
कुनमुनाई पीपल की छाँव !!

 (2)
आज फिर अचानक
सोनजूहीने बरसा दिए,
फूल अंजुरी भर-भर ! 
सरसों के खेत में उड़ते उड़ते,
रुक गए कृष्ण-भ्रमर!!

(3)

आज फिर अचानक
बादलों की ओट से लगा झाँकने
सूरज व्यतिथ सा !
मेरी गुमसुम सी देह मुस्कुराई
जाग उठा तन वसंत सा !!

(4)
आज फिर अचानक
पलाश के लाल दहकते फूल 
छुपे,सघन हरे पातो में !
जैसे हरी चुनर लपेटती हो तुम
सुर्ख मेंहदी रचे हाथों में !!


 (5)
आज फिर अचानक
तुम्हारे आते ही मेरे मन की,
सारी सृष्टि गोरी हो गयी !
तुम्हरे बदन के बसंत से
नहाई धूप में ,
मेरे बदन की हरेक राग,
फाग-फाग होरी हो गयी !!


(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA


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