Monday 9 February 2015

‘अक्का-बिया-डा’

         अक्का-बिया-डा’ .
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ग्रेट अंडमैनीज़ आदिवासियों के नाम )

अक्काबिया-डा,
माउँट हैरियेट की पनाहों से
निकोबार के सघन वर्षा वनों के
बीच गुजरती राहों से
पाषाण युग से धधक रही
चूने की गुफाओं से
स्वार्थ से भरी
इनेन’ की लोलुप निगाहों से
तुमने अपना जीन-पूल’ बचाए रखा
तुम्हें सलाम !
अक्का बिया-डा,
यहाँ बहुत से लोग आये हैं
तुम में अपने पूर्वजों की
आदिम प्रजाति देखने
एक अनाम सी उत्तेजना लिए
कुछ नग्न चित्रों की खोज में
मुँह फाडे अजदहों से लपलपाते हैं
उनके ज़ूम और फ़्लैश गन
पानी से टकराती
चट्टानों के घनेर में
पेड़-दर-पेड़ घिर आये
साँझ के अंधेर में
एक सूनी सी ज़िन्दगी में
तुम्हारे अनावृत ताम्बई कंधों से
खिसकती जा रही लाल चादर के घेर में
अब मैं भी खोने लगा हूँ ,
अनगूंजे आदिम गीतों की टेर में
अक्का बिया-डा,
तुम अपनी नौका बनाते हो
जीवन समुद्र में खोने को
यक्ष-शापित निर्वासन को
पीढ़ी-दर-पीढ़ी ढोने को
अक्काबिया-डा,
क्या तुम भी
प्रेम करते हो
तुम भी गीत लिखते हो
जंगली चिड़िया को मारने से पहले
उस की कूक सुनते हो ?
मगरमैं जानता हूँ
माउँट हैरियेट की गोद में
साहिले-समन्दर पर
उमस भरी चांदनी रातों में
कविता में प्रेम नहीं बस
जीने की चाहना बची रहती है !!



अक्काबिया-डाअंडमान निकोबार की आदिम प्रजाति.
इनेन= सभ्य मानव.

(डॉ.एल.के.शर्मा)
. ……© 2015 Dr.L.K. SHARMA    


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