Tuesday, 10 February 2015

अपने घर की छत पर

अपने घर की छत पर 
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अपने घर की छत पर
पहाड़ी बरसातों में
भीगती हो तुम
पानी के उन्स को
बाहों में भरती हो तुम !
और यहाँ मैं ,समन्दर के किनारे
बैठा देख रहा हूँ
प्यार के नए उन्वान से
गीत रचती हो तुम !!

मित्ती,तुम वहाँ बारिशों से
नमी माँग लेना !
उन्हें अपनी कहानियों में
थोड़ी जगह देना !!

मैं यहाँ अपने दरके हुए
सपनों को भरने के लिए
आँखों में बालू भर लाऊँगा !
और पार्क की
उस खाली बेंच पर
साथ गुजारे लम्हों को
प्यार की जागीर के
एहसास से भर जाऊँगा !!

जानती हो ना तुम,अपनेसपने
जो साथ देखे हमने

कभी मर नहीं सकते
वो जिंदा रहेंगे
तुम्हारी हथेलियों में रुके
फूल-मोतियों’ की तरह !
या इसी द्वीप पर बिखरे
असंख्य शंख-सीपियों की तरह !!



(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA


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