अपने घर की छत पर
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अपने घर की छत पर
पहाड़ी बरसातों में
भीगती हो तुम
पानी के उन्स को
बाहों में भरती हो तुम !
और यहाँ मैं ,समन्दर के किनारे
बैठा देख रहा हूँ
प्यार के नए उन्वान से
गीत रचती हो तुम !!
मित्ती,तुम वहाँ बारिशों से
नमी माँग लेना !
उन्हें अपनी कहानियों में
थोड़ी जगह देना !!
मैं यहाँ अपने दरके हुए
सपनों को भरने के लिए
आँखों में बालू भर लाऊँगा !
और पार्क की
उस खाली बेंच पर
साथ गुजारे लम्हों को
प्यार की जागीर के
एहसास से भर जाऊँगा !!
जानती हो ना तुम,अपने, सपने
जो साथ देखे , हमने
कभी मर नहीं सकते
वो जिंदा रहेंगे
तुम्हारी हथेलियों में रुके
‘फूल-मोतियों’ की तरह !
या इसी द्वीप पर बिखरे
असंख्य शंख-सीपियों की तरह !!
(डॉ.एल.के.शर्मा)पहाड़ी बरसातों में
भीगती हो तुम
पानी के उन्स को
बाहों में भरती हो तुम !
और यहाँ मैं ,समन्दर के किनारे
बैठा देख रहा हूँ
प्यार के नए उन्वान से
गीत रचती हो तुम !!
मित्ती,तुम वहाँ बारिशों से
नमी माँग लेना !
उन्हें अपनी कहानियों में
थोड़ी जगह देना !!
मैं यहाँ अपने दरके हुए
सपनों को भरने के लिए
आँखों में बालू भर लाऊँगा !
और पार्क की
उस खाली बेंच पर
साथ गुजारे लम्हों को
प्यार की जागीर के
एहसास से भर जाऊँगा !!
जानती हो ना तुम,अपने, सपने
जो साथ देखे , हमने
कभी मर नहीं सकते
वो जिंदा रहेंगे
तुम्हारी हथेलियों में रुके
‘फूल-मोतियों’ की तरह !
या इसी द्वीप पर बिखरे
असंख्य शंख-सीपियों की तरह !!
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA
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