रौस आइलैंड से
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मैंने यूँ ही सोचा तुम्हें ,
काले पानी से भरे थाल जैसे
दरिया के किनारे ,
यूँ
ही बैठे हुए
कुछ
उनीदीं सी, थकी
हुई
चट्टानों
के सहारे !!
मैंने
यूँ ही सोचा तुम्हें ,
तेज़
हवाओं से उठती लहरें
देख
रहा हूँ मैं , गोया
अल्फाज़
हों ये ,तुम्हारी
किसी
ताज़ा नज़्म जैसे ,
सहला
रहे हों,
वक़्त
की बेरहम छैनी से
छिली
हुई मेरे बदन की
इमारत
के ज़ख्म जैसे !!
मैंने
यूँ ही सोचा तुम्हें ,
समन्दर
के ऊपर गुजरते
हवाई-जहाज़
से उड़ते हुए
एक
बेहद अकेली हो चली
सांझ
में, तुम्हारी
छत पर
ध्रुव-तारे
को उगते हुए !!
मैंने
यूँ ही सोचा तुम्हें ,
कि
कुछ ही देर में जब
काले
बादलों को चीर कर
आसमान
में चाँद निकलेगा
तुम्हारी
जुल्फों के बीच से
तुम्हारा
चेहरा
दिए
की रौशनी में चमकेगा !!
मैंने
यूँ ही सोचा तुम्हें ,
और जब
आधी रात को
वो ही
चाँद
पानी में डूब-उतरेगा
गहरी
नींदों के बीच
तुम्हारी
घनेरी अलकों को छूता हुआ
वो
माथे पर टिकुली सा दमकेगा !!
मित्ती,
इसी
रात तुम्हारी छत पर टँगी
सहमी
सी इस बदली से
मैं
अपने प्यार को जता दूँगा ,
जब
तुम अपनी तारों वाली चुनर
आँखों
पर ढाँप कर मुझे आवाज़ दोगी
मैं
तुम्हे इस ‘ज़जीरे’ का पता दूँगा !!
मैंने
यूँ ही सोचा तुम्हें ,
बस
मैंने यूँ ही सोचा तुम्हें !!
……© 2014Dr.L.K.SHARMA
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