Friday, 4 September 2015

गुंजा ,सुनो (डॉ.लक्ष्मीकांत शर्मा )

गुंजा ,सुनो 

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सुनो गुंजा, 

बहुत भाते हैं मुझे ,

बंधन नेह के !!

आत्मा से गूंजते 

प्रीत निवेदन देह के 

अयाचित से अनुबंध 

सुलगती रेत पर बरसते मेह के !!

सुनो गुंजा, 

रास आते हैं मुझे ,

विरह से व्यथित 

ऊँचे सुरों के आलाप 

कुछ मिलन गीत !!

भूले से कुछ सम्बन्ध 

एक नयी नवेली सी शरमाई प्रीत !!

सुनो गुंजा, 

पास बुलाते हैं मुझे ,

समंदर यादों के 

बेदर्दी से रौंदे हुए 

मौसम, इरादों के !!

पतझर में रंग बदलते 

बहरे ख्वाब अमलतासिये वादों के !!



……© 2014Dr.L.K.SHARMA

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