चाँद-रात उभास भरी
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मेरे घर आँगन जब उतरी
सहम गयी उदास भरी !!!
कि, कहीं मुस्कुराई तुम
आँखों में चमके चन्द्र-फूल
चाँदी सी बरस गयी हँसी
उफ़!! ये कैसे हो गयी
ये रात अब उजास भरी !!!
तुम चाँद काटने आओगी
मैं पारस-चकवा बन बैठा
उस पारिजात के गाछ तले
मैं राग सुबह के गाता हूँ
कर दूँगा रात विभास भरी !!!
तुम अब जो चेहरा देखोगी
वो प्यार नहीं अधिकार है
जिसे राहु-काल में ग्रहण लगा
उस किस्मत का अँधियार है
तुम आँख मूँद कर सोचो तो
है ये पूजा भी आभास भरी !!!
हमने सुख के फूल सुखाये हैं
और हार गूँथ लिए फंदों से
फिर खाप सरीखी दुनिया में
अपने ही शव लटकाए हैं
उस जन्म का जो वादा है
जो तुमने मुझसे बाँधा है
आओ उसको याद करो
दो मुझे रात, विश्वास भरी !!!
……©2014. Dr.L.K.SHARMA
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