तुम नहीं थे, जीवन में
~~~~~~~~~~~~~~~
बस तुम नहीं थे जीवन में
कोई और थे ,कई ठौर थे !!
अधिकार दर्प के मठाधीश
कुछ शीशकटे सिरमौर थे !!
मैं तुम बिन बहुत अधूरा हूँ !
“रैतिल्य-जन्म” का चूरा हूँ !!
हरी-भरी इस दुनिया में ,
एक टूटा पाँख सुनहरा हूँ !!
अब ढलती साँझ का दीप बनूँ !
उन आँखों का अंतरीप बनूँ !!
मुझे खुद में ही विलीन करो,
मैं इन श्वासों सा समीप बनूँ !!
अब तूफानों की आहट दो !
या कोंपल की अकुलाहट दो !!
मैं ‘मृत्यु-द्वार’ से लौटा हूँ ,
,
मुझे जीवन सपन सजावट दो !!
मुझे जीवन सपन सजावट दो !!
बन कर सरस सरिता आओगी !
इस जलते तरुवर पर छाओगी !!
मैं राह ख्वाब की देखता हूँ ,
मैं रातों जाग के सोचता हूँ ,
अब आओगी ..तब आओगी !!
कब आओगी ..कब आओगी !!
बस तुम नहीं थे जीवन में
कोई और थे ,कई ठौर थे !!
अधिकार दर्प के मठाधीश
कुछ शीशकटे सिरमौर थे !!
……© 2015Dr.L.K.SHARMA
No comments:
Post a Comment