Thursday 24 September 2015

तू ना नज़र आया ( डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा)

तू ना नज़र आया

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 (लक्ष्य “अंदाज़”)


तू फिर उसी बात पर परेशां नजर आया II
क्यूँ मेरे हिस्से वो फूलों का शजर आया II

वादा तो सांस सांस साथ निभाने का था ,
वो आखिरी हिचकी पे भी ना नजर आया II

उस गली के छोर पर तेरा वो बंद मकान ,
बेखुदी में जाने वहां कब कब गुजर आया II

शायद रवायतें अपने सहन में भी बची हों ,
राह भटका परिंदा साँझ लौट के घर आया II

सूखी काई से भरी छत पर पड़ी पतंग में ,
लिखा क्या है तू ये पढने कब उपर आया II

सादगी के हीले से बेरुखी के सदके ‘अंदाज़’ ,
तू था यूँ तो मुझे यूँ कहने का हुनर आया II



©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.


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