तू ना नज़र आया
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
तू फिर उसी बात पर
परेशां नजर आया II
क्यूँ मेरे हिस्से
वो फूलों का शजर आया II
वादा तो सांस सांस
साथ निभाने का था ,
वो आखिरी हिचकी पे
भी ना नजर आया II
उस गली के छोर पर
तेरा वो बंद मकान ,
बेखुदी में जाने
वहां कब कब गुजर आया II
शायद रवायतें अपने
सहन में भी बची हों ,
राह भटका परिंदा
साँझ लौट के घर आया II
सूखी काई से भरी छत
पर पड़ी पतंग में ,
लिखा क्या है तू ये
पढने कब उपर आया II
सादगी के हीले से बेरुखी
के सदके ‘अंदाज़’ ,
तू था यूँ तो मुझे यूँ
कहने का हुनर आया II
©2015 “अंदाज़े
बयान”
Dr.L.K.Sharma.
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