Friday, 4 September 2015

बिछडन के पार -II (डॉ.लक्ष्मीकांत शर्मा)


बिछडन के पार -II 
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पर सब बदल गया अब 

पैशन फ्लोरासी दर्पीली 

तुम्हारी ऑंखें 

जिनमे कभी काजल होता था 

मेरी नज्मों का

अब काले फ्रेम के चश्मे के पीछे 

एहसास दे रही थीं 

तुम्हारी ऑफिस वाली 

सरकारी फाइल्स के धूल अटे 

पन्नों का 

वक़्त अब हमारे बदन पर 

एक तहरीर लिख चुका था 

तुम्हारे काले क्लचरमें 

पके हुए रेशमीबाल फंसे थे 

मेरी कनपटियों से 

झाँकती 

सफेदी गवाह थी 

हमारे बुढ़ाते हुए 

अस्तित्व के अलग होने का 

सच 

उस रोज हम ऐसे मिले 

जैसे बरसों बाद 

कोई अपनी शादी का पुराना

एल्बम देखे 

या मिल जाएँ कहीं ठिठक कर 

दो एलियंस’ 

अनचाहे अनदेखे !!!




……© 2014Dr.L.K.SHARMA

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