नहीं है , कुछ याद मुझे -I
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{“TUMHEN YAAD HOGA “}
अब नहीं
मुझे याद आते
‘कायलाना’ झील के निर्जन
हरे किनारे
!!
नहीं
जगमगाते निगाह में
तुम्हारी
धानी चूनर के
झिलमिल
सितारे !!
अब नहीं
बहता मेरी आँखों में
तुम्हारे
यौवन का विक्षुब्ध
विक्रांत ‘जलधि’ !!
फाग की इस
दुपहरी में अब
लग जाती है
खिन्न उदासीन सी
क्लांत
समाधि !!
झील से सटे
उसी पुराने मंदिर के
अहातों में
अब नहीं
गूंजती
तुम्हारी गुलाबी चूड़ियों की
रेशमी झंकार
!!
जहाँ एक
छोटे मुलायम से छौने
की तरहा मेरी
गोद में
सर रख के
सोये तुम
हर बार !!
मेरी चेतना
के गिर्द अब नहीं होती
तुम्हारी
सांवली श॒लथ बाँहें !!
मेरे बटुए
में अब
राख है कुछ
सुकोमल कल्पनाओं की
और मेरी
निगाहों में सूनी राहें
!!
……©2014 “TUMHEN YAAD HOGA “ LK SHARMA
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