सलाम वो सुहाने
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
फूल और रंग के सफ़र जब कुहरे की घनी चादर ताने !!
फूलों वाली वादी की डगर साथ चलो ना सैर के बहाने !!
मेरे अख्तियार में नहीं अब शरारतें सर्द सर्द हवाओं की ,
रुई के गोलों सी भाप बनो फिर बुनूँ सांस के ताने बाने !!
तेरी छत के नीचे से गुजरती काली सडक का खालीपन ,
वो भर गया होगा जो आता है मंदिर की घंटिया बजाने !!
अब सोचता हूँ मैं तुझे ढूँढने जाऊँ तो कहाँ तक जाऊँगा,
हरेक सफे में सो रही हो तुम किसी नज्म के सिरहाने !!
तितलियों के अंदेशे में हथेलियाँ काँटों से भरती ही रही ,
खूँरेज़ हाथों से कैसे करते “अंदाज़” तुझे सलाम वो सुहाने !!
©2015 “अंदाज़े
बयान”
Dr.L.K.Sharma.