Wednesday, 24 June 2015

जाने का गात हो जी

जाने का गात हो जी
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कजरारी सी अँखियन से

अलसाई सी चितवन से

तुम………..

जाने का गात हो जी !!


अभिसारों की पुलक लिए,

अलस भोर की अंगडाई !

कोई शब्द नहीं ,ताल नहीं,

ज्यूँ कोयल कूके अमराई !

कुछ कुछ कहि जात हो जी ,  

तुम……………

जाने का गात हो जी !!



शहद भरी उस वाणी से ,

रस असावरी सा बरस गया !

अधर कपोल के कम्पन वो ,

मन एक छुवन को तरस गया !

भिनसारे फिर लजात हो जी ,

तुम………….

जाने का गात हो जी !!



अंजीर सी आँखें लाल हुई ,

गालों पे फूल उठे अनार !

मन झूमा सरसों पीली सा ,

तन बहक बना कचनार !

किसलय पारिजात हो जी ,

तुम……………

जाने का गात हो जी !!



जो लिखी नहीं वो पाती हो ,

जो कही नहीं वो कविता हो !

कभी मौन-मुखर मेरे मन का ,

कभी रातों सी नीरवता हो !

पायल छन छनात हो जी,

तुम…………

जाने का गात हो जी !!



मत राग बनो मधुरी-मधुरी ,

मैं प्रणय–दंश हूँ सदियों का !

तुम प्रवाहित धारा वेगवती ,

बहाव हो पावन नदियों का !

तुम तो जल-प्रपात हो जी ,

तुम………….

जाने का गात हो जी !!


तुम यौवन एक अल्हड सा ,

मैं फूल पीलिया अमलतास !

तुम साज़ बजाती लहरों सी ,

मैं थार की अनबुझी प्यास !

तुम तो मल्हार गात हो जी ,

तुम......

जाने का गात हो जी !!




(डॉ० लक्ष्मीकांत शर्मा )

……©’जाने का गात हो जी  Dr.L.K.SHARMA




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