जाने का गात हो जी
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कजरारी सी अँखियन से
अलसाई सी चितवन से
तुम………..
जाने का गात हो जी !!
अभिसारों की पुलक लिए,
अलस भोर की अंगडाई !
कोई शब्द नहीं ,ताल नहीं,
ज्यूँ कोयल कूके अमराई !
कुछ कुछ कहि जात हो जी ,
तुम……………
जाने का गात हो जी !!
शहद भरी उस वाणी से ,
रस असावरी सा बरस गया !
अधर कपोल के कम्पन वो ,
मन एक छुवन को तरस गया !
भिनसारे फिर लजात हो जी ,
तुम………….
जाने का गात हो जी !!
अंजीर सी आँखें लाल हुई ,
गालों पे फूल उठे अनार !
मन झूमा सरसों पीली सा ,
तन बहक बना कचनार !
किसलय पारिजात हो जी ,
तुम……………
जाने का गात हो जी !!
जो लिखी नहीं वो पाती हो ,
जो कही नहीं वो कविता हो !
कभी मौन-मुखर मेरे मन का ,
कभी रातों सी नीरवता हो !
पायल छन छनात हो जी,
तुम…………
जाने का गात हो जी !!
मत राग बनो मधुरी-मधुरी ,
मैं प्रणय–दंश हूँ सदियों का !
तुम प्रवाहित धारा वेगवती ,
बहाव हो पावन नदियों का !
तुम तो जल-प्रपात हो जी ,
तुम………….
जाने का गात हो जी !!
तुम यौवन एक अल्हड सा ,
मैं फूल पीलिया अमलतास !
तुम साज़ बजाती लहरों सी ,
मैं थार की अनबुझी प्यास !
तुम तो मल्हार गात हो जी ,
तुम......
जाने का गात हो जी !!
(डॉ० लक्ष्मीकांत शर्मा )
……©’जाने का गात हो जी’ Dr.L.K.SHARMA
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