Sunday, 14 June 2015

ताड़ से टूटी चाँदनी

ताड़ से टूटी चाँदनी 
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(1)
उस दिन जब हम मिले 
अमलतास के शहर में 
तुम भी खड़ी रहीं,
मौन की चादर में लिपटी हुई !!
मेरी व्यथायें ,शिकायतें 
अनकही, अनचिन्हीं रही 
रास्ते की धुँध में सिमटी हुई !!

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 (2)
पर तुम जाने लगीं तो जाना 
मेरी आत्मा ने सचमुच 
तुम्हारा वरण किया है !!
मैंने तुम्हारी यादों की 
बैचैन गर्म हवाओं से 
विगत की हर याद का 
क्षरण किया है !!
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 (3)
ताड की पत्तियों से 
छनकर आती 
चांदनी के टुकड़ों में 
देखता हूँ मैं ,
मेरे बदन पर तुम्हारे वचनों की
ज़ंजीर के सिवा 
कुछ नहीं , 
कुछ भी नहीं !!
और मेरे मन की 
बंद कोशिका में 
तुम्हारी एक तस्वीर के सिवा 
कुछ नहीं , 
कुछ भी नहीं !!
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(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2014 ताड से टूटी चांदनी’  Dr.LK SHARMA


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