Sunday 21 June 2015

मुझे मुआफ करना दोस्त




मुझे मुआफ करना दोस्त
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मुझे मुआफ करना दोस्त ,
आज मेरे पास कोई गीत नहीं
दरअसल ,
आज बेहोश हो कर गिरते वक़्त
तुम नहीं थे साथ
जब होश आया तो भूल गया मैं
क्या पसंद है तुम्हें !
आज की
इस उदास रात में
दिन से उजले और ,
रात से काले घोड़ों वाली बग्घी में
मैं तनहा हूँ
कभी इसी में तुमने
बांधकर एक गठरी में
रख दिए थे
मसले जिंदगी के
और लम्हें फुरसतों के !
आज वो जगह खाली है
मैं नहीं जानता दोस्त
मगर कल शाम
हाट के सौदगरों के यहाँ
वो मसाइल और वो फुरसतें
बिकते रहे !
मेरे सादादिल दोस्त ,
तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है
शायद इस सराय जितना
जिसमें सरे-शाम
समा जाते हैं
कुछ मिरासी ,कुछ भांड
सफ़ेद दाढ़ी वाले नकली सूफी
“मोहिनी अट्टम” पर थिरकते जिप्सी
चोर उच्चके बदमाश  !
मगर दोस्त ,
जिंदगी जैसी भी हो
सराय में बसर नहीं होती
और हर सफ़र की मंजिल
महबूब की नज़र नहीं होती !
मैं नहीं जान पाया दोस्त ,
पर तुम्हारी चाह के
आखिरी छोर पर
मौत का डेरा है
और बाहर से ज्यादा डरावना
मेरे भीतर का अँधेरा है !
तुम आज की रात फिर से
चाँद से सितारों की बात करना
फिर गुलाबी दुपट्टे से
आधा मुंह ढांप कर
किसी की रातों के
सवालों का जवाब हो जाना
मौत की राह में
मेरा ये आखिरी सफ़र याद रखना
मेरी रूहे बैचैन को
जिस्म से आजाद करने का
सबाब हो जाना !!
मुझे मुआफ करना दोस्त ,
आज मेरे पास कोई गीत नहीं !!!



लक्ष्य “अंदाज़”
©2015 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.LK SHARMA




  




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