Friday, 17 July 2015

मैंने ढूंढा तुम्हें / लक्ष्य “अंदाज़”

मैंने ढूंढा तुम्हें
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(लक्ष्य “अंदाज़”)

बादलों में छुपी चाँदी रेख सी !
बौद्द स्तूप के गूढ़ आलेख सी !
अपठित ही रही अनछुई सी रही ,
चाँद चातक की चटकी हुई प्यास में…..
मैंने ढूंढा तुम्हें धरती आकाश में !!


झील में गईं चाँद जैसी छिपी !
मौन पर्वत में नाद जैसी छिपी !
एक अनदिखी गूंज सी हो गईं ,
आने जाने लगीं मेरी सांस सांस में ….
मैंने ढूंढा तुम्हें धरती आकाश में !!


बहर में छिपी ग़ज़ल बन गईं !
मेरे गीतों से खोया पल हो गईं !
किताबों में रहीं खिताबों में रमी ,
वर्ण -छंदों के छद्म आभास में……
मैंने ढूंढा तुम्हें धरती आकाश में !!


तुम नदी हुई तुम सोचने भी लगीं !
चीडवन में खुद को रोपने भी लगीं !
रुक के सोचा नहीं तुम बहती गईं ,
किस सागर की अंजान आस में……
मैंने ढूंढा तुम्हें धरती आकाश में !!


©2015Dr.LK SHARMA









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