Tuesday, 7 July 2015

बोलो गुंजा, यही सच है ना

बोलो गुंजा, यही सच है ना
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बोलो गुंजा, कहो ना..... 

तुम्हीं ने बुलाया ना मुझे ,

यादों की सूनी बावड़ी के आखिरी मकान से !

रंग दिए हरित पहाड़,बुरांस के लाल फूलों से,

बहे रेत में कल-कल झरने नदियों के उफान से !


बोली थी तुम आओ, 

साथ साथ बहो ना ..... 

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बोलो गुंजा, कहो ना .... 

तुम्हीं ने सिखाया ना मुझे , 

विरह के गीतों को छंदों से जोड़े रखना !

संयोग के नित नवीन आयाम दे कर कहा, 

श्रृंगार रस को अपने बिम्बों से जोड़े रखना !
 
अनहद नाद को भी , 

मेरे नाम से कहो ना.... 

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बोलो गुंजा, कहो ना .... 

तुम्हीं ने छिपाया ना मुझे , 

मैं देवदार सी घनी छाँव में तुम्हें खोजता रहा !

तुम अंधेरों की छुअन में सायों सी लजाने लगी , 

मैं पनघट पर सावन में खड़ा तुम्हें सोचता रहा !

मुस्कुराई सी बोली तुम, 

भीगी प्रणय पीर सहो ना.... 


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बोलो गुंजा, कहो ना .... 

तुम्हीं ने सुझाया ना मुझे , 

सपनो में बजती हुई शहनाई की धुन सुन लेना !
 
तुम्हारे नाम से जुडी गजलों को गाते ही रहना ,

आँखें बंद करके तुम्हारी पायलों की छुन सुन लेना ! 

बंद कली सी सुरभित बोली तुम, 

आओ मेरे कानो में बजो ना ....

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बोलो गुंजा, कहो ना ...... 

तुम्हीं ने बताया ना मुझे , 

चांदनी से भरे बदन से उठती साँसों को पीते रहना ! 

मैं पीवनेसांप की तरह तुम्हारी साँसे पीता रहा ,

बादलों जैसे बरसा पर अंतस का पानी से रीते रहना ! 

रातों को मुग्ध आभास में ,

बोली तुम साँसों को छुओ ना ....

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बोलो गुंजा, कहो ना ..... 

अब .....

तुम्हीं ने छुपाया है मुझे ,

पहाड़ों की ढलान से उतार कर तलहटी में ले आई !

प्रेम भरी सुवास से महकी हवाएं भी उड़ा ले गयी ,

मेरे चारों ओर की बयार को मंत्रबिद्ध परिधि दे आई !


मुझे महसूस करो तुम,

मन से तो मेरे हो ना .....

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बोलो गुंजा, कहो ना ...... 

फिर क्यू आज .............

तुम्हीं ने रुलाया है मुझे ,

नीले फूलों वाला पेड़ की छाँव दग्ध कर गयी ! 

मान की झीनी परतें तार तार हो कर बिखरी ,

अपने अस्तित्व का होना ही संदिग्ध कर गयी !

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जाने दो, रहने दो अब 

अपनी मृदुवंशी सी वाणी 

कुछ अबोल कहो ना .....

गुंजा कुछ मत कहो ना .... 

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लक्ष्य “अंदाज़”
©2015Dr.LK SHARMA

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