अफसाने तिश्नगी के
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
वो मुहब्बत क्या थी
जो मैं को तुम ना कर सकी !!
हवा क्या हुई जो मौज
को तलातुम ना कर सकी !!
चाँद पकड़ने चले हो
साहिब ऐहितयात रखना जरा ,
त्रिशंकु की कहानी
को तारीख गुम ना कर सकी !!
बदलियों की दोस्ती पानियों
से इक मिसाल सही ,
पर उस हिज्र के दर्द
का इल्म तुम ना कर सकी !!
नीले फूलों के
इंतज़ार में हरी घास अब जल गई ,
“अंदाज़” की प्यास
बारिशें भी खुम ना कर सकी !!
©2015 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K. SHARMA
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