सोचा था इन बरसातों में
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(डॉ.एल.के.शर्मा)
सोचा
था इन बरसातों में
भीगे तन से पींग भरूँगा
पावस मद में बहक जाऊँगा
सावन के कुछ छंद लिखूंगा !!
भीगे तन से पींग भरूँगा
पावस मद में बहक जाऊँगा
सावन के कुछ छंद लिखूंगा !!
पिहूक पपीहे की पी लूँगा
कुहु कोयलिया की जी लूँगा
महुवा रस की धार भरूँगा
सोनजूही का ताप हरूँगा !!
पावस मद में बहक जाऊँगा
सावन के कुछ छंद लिखूंगा !!
किसे खबर थी विपत मिलेगी
और जीवन के अनुबंध लिखूंगा !!
बस
औरों की आँख तकूंगा
बस उन से सपने मांगूंगा
फिर अपनी आँखों में भर लूँगा
इस थार को जीवन कर लूँगा
उस नागफनी की छाँव लगूंगा !!
बस उन से सपने मांगूंगा
फिर अपनी आँखों में भर लूँगा
इस थार को जीवन कर लूँगा
उस नागफनी की छाँव लगूंगा !!
पावस
मद में बहक जाऊँगा
सावन के कुछ छंद लिखूंगा !!
उस सावन जो गले लगे थे
इस सावन जो चले गए है
उन बादलों को याद करूँगा
पेड़ ,परिंदे और प्रवास के
हाहाकारी निबंध लिखूंगा !!
सावन के कुछ छंद लिखूंगा !!
उस सावन जो गले लगे थे
इस सावन जो चले गए है
उन बादलों को याद करूँगा
पेड़ ,परिंदे और प्रवास के
हाहाकारी निबंध लिखूंगा !!
पावस
मद में बहक जाऊँगा
सावन के कुछ छंद लिखूंगा !!
सावन के कुछ छंद लिखूंगा !!
किसे खबर थी विपत मिलेगी
और जीवन के अनुबंध लिखूंगा !!
विलुप्त
नदी के तीर जाऊँगा
वियोग के प्रबंध लिखूंगा !!
वियोग के प्रबंध लिखूंगा !!
पावस मद में बहक जाऊँगा
सावन के कुछ छंद लिखूंगा !!
……© 2015 ‘सोचा था इन बरसातों में’Dr.L.K.SHARMA'
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