मेरे युद्ध प्रिय मित्र
~~~~~~~~~~~~~
युद्ध पसंद है तुम्हें
और, युद्ध में जीत भी
आओ, इस बार छद्म युद्ध करें
क्योंकि जानता हूँ मैं,
कोई युद्ध आखिरी नहीं होता
आज सामने खड़े हो तुम
युद्ध-क्षेत्र में, धर्म-क्षेत्र में
पर इत्मीनान रखो
मेरे गांडीव की प्रत्यंचा
तुम पर तानी हुई जरूर दिखेगी
पर तीर तुम तक नहीं पहुंचाएगी
मेरे लिए तुम कान्हा स्वरूप हो
ये और बात है
,
तुम आज कौरवों से जा मिले हो
पर तुम डरो नहीं
इस आश्वस्ति पत्र पर
हस्ताक्षर करता हूँ मैं
इस युद्ध की पटकथा मैं लिखूंगा
यहाँ रखंगे हम
एक छाया-पुरुष का दिग्दर्शन
मेरे भीतर के ‘का-पुरुष’ का निर्देशन
क्योंकि जानता हूँ मैं,
कोई युद्ध आखिरी नहीं होता
पर ठहरो,
महाभारत में कौरव-दल परास्त हुआ था
तुम इतिहास के विद्वान् हो
और जीत पसंद है तुम्हें
मैं इस बार तुम्हें सिकंदर महान का रोल दूँगा
खुद मैं राजा पोरस की भूमिका में रहूँगा
इतिहास की उस किताब में
पढ़ा था मैंने कि युद्ध के बाद
युद्ध-बंदी पोरस ने
सिकंदर महान से कहा था
कि मेरे साथ राज्योचित व्यवहार किया जाए
इस एक संवाद ने
पोरस को इतिहास में अमर कर दिया
सिकंदर ने पोरस को ससम्मान बरी कर दिया
सातवीं कक्षा में
इतिहास पढ़ाते रामचरन मास्साब की
फडकती भुजाओं ने
और आवेश से फैलते नथुनों ने
यह मेरे अबोध मन में घर कर दिया
परन्तु, मेरे युद्ध-प्रिय मित्र !!
आज भोर के स्वपन में देखा मैंने
कि, ये संवाद सिकंदर को
कुछ ख़ास पसंद नहीं आया
और सिकंदर ने पोरस का सर
भुट्टे की तरह काटकर
धड से अलग कर दिया !!
क्योंकि जानता हूँ मैं,
कोई युद्ध आखिरी नहीं होता .....!
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युद्ध पसंद है तुम्हें
और, युद्ध में जीत भी
आओ, इस बार छद्म युद्ध करें
क्योंकि जानता हूँ मैं,
कोई युद्ध आखिरी नहीं होता
आज सामने खड़े हो तुम
युद्ध-क्षेत्र में, धर्म-क्षेत्र में
पर इत्मीनान रखो
मेरे गांडीव की प्रत्यंचा
तुम पर तानी हुई जरूर दिखेगी
पर तीर तुम तक नहीं पहुंचाएगी
मेरे लिए तुम कान्हा स्वरूप हो
ये और बात है
,
तुम आज कौरवों से जा मिले हो
पर तुम डरो नहीं
इस आश्वस्ति पत्र पर
हस्ताक्षर करता हूँ मैं
इस युद्ध की पटकथा मैं लिखूंगा
यहाँ रखंगे हम
एक छाया-पुरुष का दिग्दर्शन
मेरे भीतर के ‘का-पुरुष’ का निर्देशन
क्योंकि जानता हूँ मैं,
कोई युद्ध आखिरी नहीं होता
पर ठहरो,
महाभारत में कौरव-दल परास्त हुआ था
तुम इतिहास के विद्वान् हो
और जीत पसंद है तुम्हें
मैं इस बार तुम्हें सिकंदर महान का रोल दूँगा
खुद मैं राजा पोरस की भूमिका में रहूँगा
इतिहास की उस किताब में
पढ़ा था मैंने कि युद्ध के बाद
युद्ध-बंदी पोरस ने
सिकंदर महान से कहा था
कि मेरे साथ राज्योचित व्यवहार किया जाए
इस एक संवाद ने
पोरस को इतिहास में अमर कर दिया
सिकंदर ने पोरस को ससम्मान बरी कर दिया
सातवीं कक्षा में
इतिहास पढ़ाते रामचरन मास्साब की
फडकती भुजाओं ने
और आवेश से फैलते नथुनों ने
यह मेरे अबोध मन में घर कर दिया
परन्तु, मेरे युद्ध-प्रिय मित्र !!
आज भोर के स्वपन में देखा मैंने
कि, ये संवाद सिकंदर को
कुछ ख़ास पसंद नहीं आया
और सिकंदर ने पोरस का सर
भुट्टे की तरह काटकर
धड से अलग कर दिया !!
क्योंकि जानता हूँ मैं,
कोई युद्ध आखिरी नहीं होता .....!
……© 2014 Dr.LK SHARMA
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