इक बदली दीवानी हो
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
इक घड़े में ठंडा पानी हो ,
इक बदली कोई दीवानी हो !!
उमस भरी इस बस्ती में ,
फिर महकी सुबह सुहानी हो !!
रंग भरे रसीले होठों से
रसभरी सी बातें तुम बोलो
अँगूर की फूली शाखों पर
फिर बंधी चुनरिया धानी हो !!
इक बदली कोई दीवानी हो !!
दूब घास फिर से भीगे
तुम उस पर नंगे पाँव चलो
फिर उस कमरे से इस कमरे
पांवों की छाप निशानी हो !!
इक बदली कोई दीवानी हो !!
शर शरबती रानाईयों से
घर बोतलों सा भर जाए
बाल्टी में नल से गीत भरें
और गुन -गुन तेरी जुबानी हो !!
इक बदली कोई दीवानी हो !!
खाली दोपहर फिर से भरे
अम्बियाँ महकी साँसों से
और शब्द पेड़ की चिड़िया से
कागज उतरें चहक कहानी हो !!
इक बदली कोई दीवानी हो !!
उमस भरी इस बस्ती में ,
इक लम्स भरी कहानी हो !!
इक घड़े में ठंडा पानी हो ,
और बदली कोई दीवानी हो !!
©2015Dr.LK SHARMA

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