बोलो गुंजा, यही सच है ना
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बोलो गुंजा, कहो ना.....
तुम्हीं ने बुलाया ना मुझे ,
यादों की सूनी बावड़ी के आखिरी मकान से !
रंग दिए हरित पहाड़,बुरांस के लाल
फूलों से,
बहे रेत में कल-कल झरने नदियों के उफान से !
बोली थी तुम आओ,
साथ साथ बहो ना .....
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बोलो गुंजा, कहो ना ....
तुम्हीं ने सिखाया ना मुझे ,
विरह के गीतों को छंदों से जोड़े रखना !
संयोग के नित नवीन आयाम दे कर कहा,
श्रृंगार रस को अपने बिम्बों से जोड़े रखना !
अनहद नाद को भी ,
मेरे नाम से कहो ना....
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बोलो गुंजा, कहो ना ....
तुम्हीं ने छिपाया ना मुझे ,
मैं देवदार सी घनी छाँव में तुम्हें खोजता
रहा !
तुम अंधेरों की छुअन में सायों सी लजाने लगी ,
मैं पनघट पर सावन में खड़ा तुम्हें सोचता रहा
!
मुस्कुराई सी बोली तुम,
भीगी प्रणय पीर सहो ना....
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बोलो गुंजा, कहो ना
....
तुम्हीं
ने सुझाया ना मुझे ,
सपनो
में बजती हुई शहनाई की धुन सुन लेना !
तुम्हारे
नाम से जुडी गजलों को गाते ही रहना ,
आँखें
बंद करके तुम्हारी पायलों की छुन सुन लेना !
बंद
कली सी सुरभित बोली तुम,
आओ
मेरे कानो में बजो ना ....
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बोलो गुंजा, कहो ना ......
तुम्हीं ने बताया ना मुझे ,
चांदनी से भरे बदन से उठती साँसों को पीते
रहना !
मैं “पीवने” सांप की तरह
तुम्हारी साँसे पीता रहा ,
बादलों जैसे बरसा पर अंतस का पानी से रीते
रहना !
रातों को मुग्ध आभास में ,
बोली तुम साँसों को छुओ ना ....
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बोलो गुंजा, कहो ना .....
अब .....
तुम्हीं ने छुपाया है मुझे ,
पहाड़ों की ढलान से उतार कर तलहटी में ले आई !
प्रेम भरी सुवास से महकी हवाएं भी उड़ा ले गयी
,
मेरे चारों ओर की बयार को मंत्रबिद्ध परिधि
दे आई !
मुझे महसूस करो तुम,
मन से तो मेरे हो ना .....
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बोलो गुंजा, कहो ना ......
फिर क्यू आज .............
तुम्हीं ने रुलाया है मुझे ,
नीले फूलों वाला पेड़ की छाँव दग्ध कर गयी !
मान की झीनी परतें तार तार हो कर बिखरी ,
अपने अस्तित्व का होना ही संदिग्ध कर गयी !
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जाने दो, रहने दो अब
अपनी मृदुवंशी सी वाणी
कुछ अबोल कहो ना .....
गुंजा कुछ मत कहो ना ....
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लक्ष्य “अंदाज़”
©2015Dr.LK SHARMA