गुजरे साल से खुश
हैं
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
हम वो हैं जो के गुजरे
साल से खुश हैं !!
माछ नहीं न सही हम
दाल से खुश हैं !!
बिखरी हुई रेत की
कहानियाँ कौन कहे ,
तेरे गीतों के उड़ते
गुलाल से खुश हैं !!
सावन ने धरती
की सूनी गोद भरी है ,
फूल ले लो हम पातभरी
डाल से खुश हैं !!
तुम दोस्तों के भेस
में रकीबों से मिलो ,
हम बैचैन रात के
सूरते हाल से खुश हैं !!
विलोपित नदी के तीर
नेह बचा क्या ,
झुलसे हुए पेड़ इसी सवाल
से खुश हैं !!
जीनते महफ़िल होने से
पहले जाना होता ,
‘अंदाज़’ इस बेवजह के
मलाल से खुश हैं !!
रंग भरे आस्माँ के शामियाने तो देख ,
आवारा पहलू में
बेवफा हिलाल से खुश हैं !!
©2015 “अंदाज़े
बयान”
Dr.L.K.Sharma
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