Friday, 18 December 2015

गुजरे साल से खुश हैं / ( डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )

गुजरे साल से खुश हैं 
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(लक्ष्य “अंदाज़”)

हम वो हैं जो के गुजरे साल से खुश हैं !!
माछ नहीं न सही हम दाल से खुश हैं !!

बिखरी हुई रेत की कहानियाँ कौन कहे ,
तेरे गीतों के उड़ते गुलाल  से खुश हैं !!

सावन ने धरती की  सूनी गोद भरी है ,
फूल ले लो हम पातभरी डाल से खुश हैं !!

तुम दोस्तों के भेस में रकीबों से मिलो ,
हम बैचैन रात के सूरते हाल से खुश हैं !!

विलोपित नदी के तीर नेह बचा क्या ,
झुलसे हुए पेड़ इसी सवाल से खुश हैं !!

जीनते महफ़िल होने से पहले जाना होता ,
‘अंदाज़’ इस बेवजह के मलाल से खुश हैं !!

रंग भरे आस्माँ  के शामियाने तो देख ,
आवारा पहलू में बेवफा हिलाल से खुश हैं !!



©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma



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