Saturday, 28 November 2015

क्यूँ ना चाहूँ / (डॉ.लक्ष्मी कान्त शर्मा )

क्यूँ ना चाहूँ 
   
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(लक्ष्य “अंदाज़”) 

दर्द की बारिशों के बाद धनक सा खिला है !!
तुझे क्यूँ ना चाहूँ जो अब जा के मिला है !!

जूनूँ –ऐ- इश्क नहीं ये सादा सा रिश्ता है ,
खुशबू बनकर जो मेरी हवाओं में घुला है !!

आजाद ही रहते हैं रंगों -बू चाँद बारिशें ,
कौन मिल्कियत बांधे किसका हौसला है !!

मेरी बाहों के दायरे में तेरी परछाई सही ,
तपती धूप में दी हुई अज़ान का सिला है !!

मुझसे दूर होना तेरे अख्तियार में नहीं ,
मुझमें तू भी मेरे नसीब सा मुब्तिला है !!

मैं उडती पतंग तू परवाज़ बन के आया ,
देख मेरे बदन का तंग टूटा है कि सिला है !!

अक्सो तस्वीर दिल की दीवार पे चस्पा है ,
देख तुझे देख ‘अंदाज़’ कैसा खिला खिला है !!


©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.









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