Wednesday, 25 November 2015

दूरियाँ कम कर दे / (डॉ.लक्ष्मी कान्त शर्मा )

दूरियाँ कम कर दे 

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(लक्ष्य “अंदाज़”)  

इस से पहले कि देर हो जाए दूरियाँ कम कर दे !!
आ गले मिल शिकवों भरी मजबूरियां कम कर दे !!

नर्म अल्फाजों की हरारत कुछ इस तरह अता कर ,
बदन में सुलगते लहू की चिनगारियाँ कम कर दे !!

अपने गीतों में सुनपेड़ की जलती लाशें भी लिख ,
बाम पर इठलाते महबूब की उरियाँ कम कर दे !!

कत्ले –बेजुबाँ और अहले सियासत की तंगदिली ,
रहम कर दादरी पर ये बद्गुजारियाँ कम कर दे !!

तमगे लौटाने की जिद और आंसुओं की नुमाइशें ,
मेरे मालिक अदीबों की शर्मसारियाँ कम कर दे !!

दुकाँ बारूद की मातम भी लाती है शादमानी भी ,
बाद दीवाली हिन्द की गमगुसारियाँ कम कर दे !!


“अंदाज़” की आँखों को खौफ के मंजर ना दे रब ,
अब यूँ कर बड़बोलों की बदख्वारियाँ कम कर दे !!




©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma

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