दूरियाँ कम कर दे
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
इस से पहले कि देर
हो जाए दूरियाँ कम कर दे !!
आ गले मिल शिकवों
भरी मजबूरियां कम कर दे !!
नर्म अल्फाजों की
हरारत कुछ इस तरह अता कर ,
बदन में सुलगते लहू की
चिनगारियाँ कम कर दे !!
अपने गीतों में सुनपेड़
की जलती लाशें भी लिख ,
बाम पर इठलाते महबूब
की उरियाँ कम कर दे !!
कत्ले –बेजुबाँ और
अहले सियासत की तंगदिली ,
रहम कर दादरी पर ये
बद्गुजारियाँ कम कर दे !!
तमगे लौटाने की जिद
और आंसुओं की नुमाइशें ,
मेरे मालिक अदीबों
की शर्मसारियाँ कम कर दे !!
दुकाँ बारूद की मातम
भी लाती है शादमानी भी ,
बाद दीवाली हिन्द की
गमगुसारियाँ कम कर दे !!
“अंदाज़” की आँखों को
खौफ के मंजर ना दे रब ,
अब यूँ कर बड़बोलों की
बदख्वारियाँ कम कर दे !!
©2015 “अंदाज़े
बयान”
Dr.L.K.Sharma
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