तू
भी समझा होता
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(लक्ष्य
“अंदाज़”)
बेहतर होता ये शनासाई समझा होता !!
उगते सूरज की तनहाई समझा होता !!
बागो-शुबहा में फूलों के खिलने से पहले ,
उस वसले-गुल की रानाई समझा होता !!
मेरे होठों पे अपना नाम ढूंढने की जगह,
मेरी नज्मात की रोशनाई समझा होता !!
डूबती साँझों के मन्ज़र लिए आँखों में ,
कांपते जिस्मों की पुरवाई समझा होता !!
दश्त की हवाओं में यह कैसी बेचैनी है ,
कल रात सपने की बीनाई समझा होता !!
लफ़्ज़ों से बयान हुई ना नज्मों से अयाँ ,
नादानिये ‘अंदाज़’ की दानाई समझा होता !!
©2015 “अंदाज़े
बयान”
Dr.L.K.Sharma.
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