Friday, 11 December 2015

मेरे अदीब रहने दे / (डॉ.लक्ष्मीकान्त शर्मा )

मेरे अदीब रहने दे 

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(लक्ष्य “अंदाज़”)

सब झमेले हादिसों के मेरे करीब रहने दे !!
हाथ ना रख सीने पे जख्मे-सलीब रहने दे !! 

फिर इक बार धूप फिर से वही तन्हाई है ,
इस पे गजल ना लिख मेरे अदीब रहने दे !!

सर्द सर्द इन रातों की तवील सी तन्हाइयां ,
चाँद न सही पहलू में मेरा हबीब रहने दे !!

फूल बेच अब कोई सांझ ढले घर आया है ,
महकी जुल्फों के साए जहे नसीब रहने दे !!

उनसे तेरी चाहत पे कब कोई शेर कहा मैंने,
हाथ हटा ले होठों से सुन ऐ रकीब, रहने दे !!

नजरबंदी के दौर में कौन सिरफिरा फिरता है ,
लब को आज़ाद कर पैरों में ज़रीब  रहने दे !!




©2015 “अंदाज़े बयान” Dr.L.K.Sharma







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