मेरे अदीब रहने दे
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
सब झमेले हादिसों के मेरे करीब रहने दे !!
हाथ ना रख सीने पे जख्मे-सलीब रहने दे !!
फिर इक बार धूप फिर से वही तन्हाई है ,
इस पे गजल ना लिख मेरे अदीब रहने दे !!
सर्द सर्द इन रातों की तवील सी तन्हाइयां ,
चाँद न सही पहलू में मेरा हबीब रहने दे !!
फूल बेच अब कोई सांझ ढले घर आया है ,
महकी जुल्फों के साए जहे नसीब रहने दे !!
उनसे तेरी चाहत पे कब कोई शेर कहा मैंने,
हाथ हटा ले होठों से सुन ऐ रकीब, रहने दे !!
नजरबंदी के दौर में कौन सिरफिरा फिरता है ,
लब को आज़ाद कर पैरों में ज़रीब रहने दे
!!
©2015 “अंदाज़े बयान” Dr.L.K.Sharma
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