अब के, सावन
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अब के सावन यूँ करें ,
इस कुदरत को मनाएं !!
तुम भीगी बदली सी बरसो ,
ह्म जलता वन बन जाएं !!
बचपन के उस खेल को ,
चल , फिर से आजमाएं !!
आह ! तुमको दें आवाज़ ,
हम ,दूर कहीं छिप जाएं !!
गाँव के पोखर में फिर ,
नीली मछलियों को ढूंढें !!
बाँध किनारे बीजें फूल ,
पीली तितलियाँ उगाएँ !!
खुले आसमाँ के नीचे ,
रात खाट पर लेटें !!
जलते बुझते जुगनुओं को
कोई गीत नया सुनाएं !!
रात का सुरमा आँखों में
और , तारों की माला
चाँद को पीछे से पकड़ें ,
इक चन्द्रहार पहनाएँ !!
बैठ खेत की मेंड पर ,
पग पानी में डाले !!
बादलों पर नाम तुम्हारा ,
लिक्खें और मिटाएं !!
चूल्हे आगे बैठी हो तुम,
रोटी महकी शाम !!
दिप-दिप करते चेहरे को ,
जी भर नज़र लगाएं !!
वक़्त के सूखे चिथड़े को ,
फटी पतंग सा फेंक !!
बोझिल दिन को विदा करें
चिड़ियों सा सो जाएं !!
(photo courtsy: Google)
लक्ष्य "अंदाज़"
……©2015 Dr.L.K.SHARMA
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