Tuesday 26 May 2015

अब के, सावन

अब के, सावन
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अब के सावन यूँ करें ,
इस कुदरत को मनाएं !!
तुम भीगी बदली सी बरसो ,
ह्म जलता वन बन जाएं !!

बचपन के उस खेल को ,
चल , फिर से आजमाएं  !!
आह ! तुमको दें आवाज़ ,
हम ,दूर कहीं छिप जाएं  !!

गाँव के पोखर में फिर ,
नीली मछलियों को ढूंढें !!
बाँध किनारे बीजें फूल ,
पीली तितलियाँ उगाएँ !!

खुले आसमाँ के नीचे ,
रात खाट  पर लेटें !!
जलते बुझते जुगनुओं को
कोई गीत नया सुनाएं !!

रात का सुरमा आँखों में
और , तारों की माला
चाँद को पीछे से पकड़ें ,
इक चन्द्रहार पहनाएँ !!

बैठ खेत की मेंड पर ,
पग पानी में डाले !!
बादलों पर नाम तुम्हारा ,
लिक्खें और मिटाएं  !!

चूल्हे आगे बैठी हो तुम,
रोटी महकी शाम  !!
दिप-दिप करते चेहरे को ,
जी भर नज़र लगाएं !!

वक़्त के सूखे चिथड़े को ,
फटी पतंग सा फेंक !!
बोझिल दिन को विदा करें
चिड़ियों सा सो जाएं !!


(photo courtsy: Google)
लक्ष्य "अंदाज़" 
 ……©2015 Dr.L.K.SHARMA




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