Wednesday, 27 May 2015

बातें बेमानी कहा करता हूँ

         
        
बातें बेमानी कहा करता हूँ !
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(लक्ष्य अंदाज़”)          

तू हादसों में रंग भरता है मैं कहानी कहा करता हूँ !!

मैं शाम के सूरज की लाचार जवानी कहा करता हूँ !!


रात के आगोश में पिघली चांदी सा दमके वो बदन ,

मैं पारा पारा बिखर के अशा’र रूमानी कहा करता हूँ !!


तेरी हिना रची अंगुली से मेरे होठों की छुवन चुराई ,

मैं उस बद्तमीज़ हवा को भी सुहानी कहा करता हूँ !!


सहन में अब तेरी याद वाली हिचकियों का डेरा है ,

मैं हर शाम तुझे अश्कों की जुबानी कहा करता हूँ !!


मेरे सपनो की रेत में जो झील बन के ठहर गई ,

मैं अब उस नदी की बेख़ौफ़ रवानी कहा करता हूँ  !!


बागीचे देखने की ख्वाहिश में सूख गई आँखों से ,

मैं पतझर में जले जंगल की वीरानी कहा करता हूँ  !!


आओ कि, मेरी बैचैन साँसों का तिलिस्म तोड़ दो ,

मैं ‘अंदाज़’ की कलम से बातें बेमानी कहा करता हूँ  !!



……©2014 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA



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