Wednesday, 27 May 2015

आखिरी अंदाज

आखिरी अंदाज
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(लक्ष्य “अंदाज़”)

यह घट बढ़ चाँद की जो हालत हुई !!
उस पर  गोया इश्क की इनायत हुई !!

उन बिल्लौरी आँखों में नहीं देखते हैं ,
एक अरसा हुए आईनों से नफरत हुई !!

अजनबी सी भीड़ में मेरे नबी खो गए ,
पहले भी कई बार मुझे ये वहशत हुई !!

इश्क के गली में बंद मकानों के आगे ,
दम तोड़ गए मुसाफिर की मैय्यत हुई !!

परिंदे की चहक को खता समझने वालों ,
कब से तुम को  गुलों से मुहब्बत हुई !!

मधु चखना है तो हाथों के डंक न गिन ,
कामयाबियां तो हासिल बा मशक्कत हुई !!

हम तो आसमाँ  को घर करने चल पड़े,
पैरों तले जमीं खिसकी तो कयामत हुई !!

खूंरेज लफ्जों को कागज़ पर उतार कर ,
सोचता है ‘अंदाज़’ ये ग़ज़ल की सूरत हुई !!



 (डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015
“ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K. SHARMA

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