आखिरी अंदाज
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
यह घट बढ़ चाँद की जो हालत हुई !!
उस पर गोया इश्क की इनायत हुई
!!
उन बिल्लौरी आँखों में नहीं देखते हैं ,
एक अरसा हुए आईनों से
नफरत हुई !!
अजनबी सी भीड़ में
मेरे नबी खो गए ,
पहले भी कई बार मुझे
ये वहशत हुई !!
इश्क के गली में बंद
मकानों के आगे ,
दम तोड़ गए मुसाफिर
की मैय्यत हुई !!
परिंदे की चहक को
खता समझने वालों ,
कब से तुम को गुलों से मुहब्बत हुई !!
मधु चखना है तो हाथों
के डंक न गिन ,
कामयाबियां तो हासिल
बा मशक्कत हुई !!
हम तो आसमाँ को घर करने चल पड़े,
पैरों तले जमीं खिसकी
तो कयामत हुई !!
खूंरेज लफ्जों को
कागज़ पर उतार कर ,
सोचता है ‘अंदाज़’ ये
ग़ज़ल की सूरत हुई !!
(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K. SHARMA
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