Friday, 10 April 2015

नदी है वो , सोचती सी

नदी है वो ,सोचती सी 
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वो नदी है ,

पयस्विनी
गहरी ,खामोश और उद्दाम
क्षितिज के प्रतिबिम्ब को घेरे
कभी विलुप्त ना होने के संकल्प के साथ !!
कल-कल बहने लगेगी तीव्र अविरल धार के साथ !!


वो गीत है ,

रागमालिका….
ठुमरी, दादरा और तराना
कीर्तन की सी पावनता समेटे
निश्शब्द चीड-बन में पंचम स्वर लगाते हुए !!
प्रतिध्वनित होगी कभी बागेश्री का श्रृंगार गाते हुए !!


वो रंग है ,

इन्द्रधनुषी….
कंगन ,मेहँदी और चित्रकारित
नाचते मोर के पंखो को रंग बांटते
इन नीरव काली रातों में सपन भिगोती सी !!
महकी सुबह के नारंगी सूरज को हाथों में संजोती सी !!


वो फूल है,

सूरजमुखी…..
महुवा ,सुपर्णा और सोनजूही
हवाओं में पावन सुगंध भरते
बादलों में बीजेगी गंधमादन की केसर क्यारियाँ !!
मन-मरुस्थल में खिल उठेंगी अनगिनत फुलवारियां !!



हाँ ,वो प्यास है

शाश्वती….
पीर ,ताप और अज्ञात
नित नए यायावरी आयामों को छानती
खिलखिलाएगी कभीकविता बनकर महक उठेगी !!
गुडहल सी सुर्ख आँखों में चैतीपलाश सी चहक उठेगी !!


हाँ प्रेम है वो,

मनुहारिणी….
मधुबन ,चन्दन और समर्पण
काजरी चितवन के मोह-पाश से मन बांधती
रंगहीन बसंत के लिए अमलतासिये रंग चुराएगी !!
रेगिस्तान के वितान कैनवास पर मोतियों से तारे सजाएगी !!


(डॉ.एल. के.शर्मा)

……©2015 Dr.L.K.SHARMA

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