मेरे देस की रेत से
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गरम हवा टनकारों से रात
भर रात लड़ी !!
पस्त सी अलस भोर देर
तलक सोई पड़ी !!
तन फव्वारा बना मन वणजारों
सा भटके ,
मेरे देस की रेत से
भर गई सूखी बावड़ी !!
सूरजमुखी दाग लिए
दोपहरी के चेहरे से ,
ठूंठ पड़े उस नीम की निंबोली
प्रीत लड़ी !!
नगन लाज़ते परबतों ने
बादलों को टेर दी,
पानी दे दो ओढने को
हरीभरी इक पातडी !!
डामर पिघली सडक पे बैठ
सांझ ने सोचा ,
कितने पंछी मर गए
अमराई में सून पड़ी !!
(डॉ.एल.के.शर्मा)
……© 2015 Dr.L.K. SHARMA
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