Thursday, 8 October 2015

लौट आए वो बचपन / (डॉ.लक्ष्मीकांत शर्मा)

लौट आए वो बचपन

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(लक्ष्यअंदाज़”)

सेब की बर्फ लदी शाखें सुर्ख गुलों से भर जाएँ !!
बच्चों की बदमाशियाँ घर भर में घर कर जाएँ !!

इक आगोश के लम्स में मेरी माँ जैसी नजदीकी हो !
खामोश पनाह के साए में नींदें आँखों में भर  जाएँ !!

चाँद की मद्दम रौशनी में माँ कागज लिए बैठी सोचे !
प्रवासी पिता की चिठ्ठियों से मन के सूने कोने भर जाएँ !!

सहन की सरगोशी में कोई राग सुबह का फूटा हो !
कच्चे पक्के अमरूदों को हारिल आएँ  कुतर जाएँ !!

बाबा के कंठ से फिर मानस की लहरी बह निकले !
मुझे जगाने बार बार अंगुलियाँ  सर छूकर जाएँ !!

दादी की बटलोही में कई ‘शालिग राम’ नहाते हों !
घुटने चलते छुटकू उनको मुहँ में भरें  सरक जाएँ !!

धुंध भरे पहाड़ का घर इन दिनों अक्सर याद आता है !
बड़े शहर के छोटे मकाँ से जाने कब उस घर जाएँ !!



©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.

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