Saturday 10 October 2015

लब सडक के रह गया / ( डॉ.लक्ष्मीकांत शर्मा )

लब सडक के रह गया 
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(लक्ष्यअंदाज़”)

तू बारिशों में भीगी बंद खिड़की सा अडक के रह गया !!
गुस्सैल हवाओं की तड़प सा मैं बस तडक के रह गया !!

तू कव्वाली की राग सी गूंजी थी मंदिर से पंडाल तक ,
मकई के जल भुन दानों सा मैं बस भडक के रह गया !!

उस धनक के सारे रंग लिए तू शाम आसमां पर उतरी ,
किसी और दूसरे बादल पे मैं गरज कडक के रह गया !!

फूलों वाली गाडी में जिस मोड़ से तूने शहर छोड़ दिया ,
उस मोड़ पे एक शज़र बना मैं लब सडक के रह गया !!

कैदे तन्हाई की लैल में ना माजी याद न फिक्रे हाल ,
एक प्यास में एक नींद में “अंदाज़” गडक के रह गया !!
©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.









  





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