ठीक नहीं ये
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
इश्क में इतनी भी ज्यादा मसीहाई ठीक नहीं
II
धडकनें तो नुमायाँ हैं गिनती पढाई ठीक नहीं II
मेरे कांपते हुए बदन पर बेड़ियों का पहरा है ,
तानों की रुई से बुनी झीनी रजाई ठीक नहीं
II
पेशानी पे तेरे करम के निशाँ कम तो ना थे ,
यूँ मेरे बिगड़े नक्श की जग हँसाई ठीक नहीं II
लापता खत सा तू शहरों शहर भटका किया ,
अब खुदी को ढूंढने की बेकस दुहाई ठीक नहीं
II
इक बुरे ख्याल सा फिर लौट तो आऊँ मगर ,
वफ़ा में उजड़े लोगों से प्रीत हरजाई ठीक नहीं II
तेरे शहर की फ़ज़ा में बरसों वो रुसवा रहा ,
मुद्दतों बाद “अंदाज़” की
ये सनाशाई ठीक नहीं II
©2015 “अंदाज़े बयान” Dr.L.K.Sharma.
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