Wednesday, 7 October 2015

ठीक नहीं ये ( डॉ.लक्ष्मीकांत शर्मा )

ठीक नहीं ये
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(लक्ष्य अंदाज़”)

इश्क में इतनी भी ज्यादा मसीहाई ठीक नहीं  II
धडकनें तो नुमायाँ हैं गिनती पढाई ठीक नहीं  II

मेरे कांपते हुए बदन पर बेड़ियों का पहरा है  ,
तानों की रुई से बुनी झीनी रजाई ठीक नहीं  II

पेशानी पे तेरे करम के निशाँ कम तो ना थे ,
यूँ मेरे बिगड़े नक्श की जग हँसाई ठीक नहीं  II

लापता खत सा तू शहरों शहर भटका किया ,
अब खुदी को ढूंढने की बेकस दुहाई ठीक नहीं  II

इक बुरे ख्याल सा फिर लौट तो आऊँ मगर ,
वफ़ा में उजड़े लोगों से प्रीत हरजाई ठीक नहीं  II

तेरे शहर की फ़ज़ा में बरसों  वो रुसवा रहा ,
मुद्दतों बाद अंदाज़की ये सनाशाई ठीक नहीं II


©2015 “अंदाज़े बयान Dr.L.K.Sharma.


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